हरि का ध्यान कर किया दान
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय फल की कामना से लोगों ने गंगा में डुबकी लगायी। हरि [विष्णु] व देवी भगवती का ध्यान किया। साथ ही शीतलता प्रदायक वस्तुओं का दान किया। मुंह अंधेरे से ही स्नान के लिए घाटों पर लोगों का आना शुरू हो गया था। लोगों ने गंगा में डुबकी लगायी।
वाराणसी। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय फल की कामना से लोगों ने गंगा में डुबकी लगायी। हरि [विष्णु] व देवी भगवती का ध्यान किया। साथ ही शीतलता प्रदायक वस्तुओं का दान किया। मुंह अंधेरे से ही स्नान के लिए घाटों पर लोगों का आना शुरू हो गया था। लोगों ने गंगा में डुबकी लगायी।
मंदिरों में भगवान विष्णु व देवी लक्ष्मी से अक्षय फल की कामना की। मंदिरों में भगवान को श्वेत वस्त्र धारण करा कर चंदन अर्पण किया गया। जौ से भगवान विष्णु का पूजन किया और सत्तू का भोग लगाया। सवेरे से देर रात तक मंदिर श्रद्धालुओं से पटे रहे। कई स्थानों पर पौसरा (प्याऊ) की भी व्यवस्था की गयी। मान्यता है कि अक्षय तृतीया सतयुग तथा ब्राहृमण के श्वेत वाराह कल्प का प्रारंभ दिन है। बाबा को शीतलता के लिए फव्वारा देवाधिदेव महादेव को गर्मी की तपिश से बचाए रखने के निमित्त काशी विश्वनाथ मंदिर में विग्रह पर रजत फव्वारा लगाया गया।
देवी मणिकर्णिका का श्रृंगार- अनादि तीर्थ पुष्करिणी चक्र मणिकर्णिका कुंड में देवी मणिकर्णी का श्रृंगार किया गया। रात में अष्टधातु की प्रतिमा कुंड पर लायी गयी।
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