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रंगपंचमी पर गेर की रिवायती मस्ती में डूबेगा इंदौर

रंगों की इस रिवायती फुहार में भीगने के लिए न तो किसी को बुलावा दिया गया है, न ही कोई किसी को रंग लगाएगा। फिर भी हजारों का जन समूह 12 मार्च को रंगपंचमी पर फागुनी उल्लास में डूबकर रंगों का त्यौहार मनाएगा।

By Edited By: Published: Mon, 12 Mar 2012 12:41 PM (IST)Updated: Mon, 12 Mar 2012 12:41 PM (IST)
रंगपंचमी पर गेर की रिवायती मस्ती में डूबेगा इंदौर

इंदौर। रंगों की इस रिवायती फुहार में भीगने के लिए न तो किसी को बुलावा दिया गया है, न ही कोई किसी को रंग लगाएगा। फिर भी हजारों का जन समूह 12 मार्च को रंगपंचमी पर फागुनी उल्लास में डूबकर रंगों का त्यौहार मनाएगा।

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रंगों के सामूहिक आनंद की यह पारपंरिक छटा मध्यप्रदेश के इस उत्सवधर्मी शहर में होलिका दहन के पांचवें दिन निकलने वाली गेर [फाग यात्रा] में नजर आएगी। गेर के दौरान रंगीन फुहारों में भीगने के लिए शहर पूरी तरह तैयार है। संगम कॉर्नर क्षेत्र से निकलने वाली गेर इस रंगपंचमी पर अपने वजूद के 57 वें वर्ष में प्रवेश करेगी।

संगम कॉर्नर रंगपंचमी महोत्सव समिति के अध्यक्ष कमलेश खंडेलवाल ने बताया कि इस बार हम गेर के जरिए सांप्रदायिक सद्भावना का संदेश देंगे। गेर में मिसाइल की सूरत वाली मशीन से रंगों की बौछार की जाएगी। लेकिन इस बात का खास ध्यान भी रखा जाएगा कि गेर में कम से कम पानी खर्च हो। उन्होंने बताया कि इस बार गेर में हाथी, घोड़ों और बग्घियों के साथ आदिवासी नर्तकों की टोली दर्शकों के आकर्षण का केंद्र रहेगी। गेर ऐसा रंगारंग कारवां है, जिसमें किसी भेद के बगैर पूरा शहर शामिल होता है और जमीन से लेकर आसमान तक रंग ही रंग नजर आते हैं।

गेर शहर के अलग-अलग हिस्सों से निकाली जाती है, जिसमें परंपरागत लवाजमे के साथ हुरियारे बैंड-बाजों की धुन पर नाचते चलते हैं। साथ चलते हैं। बड़े-बडे़ टैंकर जिनमें रंगीन पानी भरा होता है। यह पानी टैंकरों में लगी शक्तिशाली मोटरों से दूर तक फुहारों के रूप में बरसता है और लोगों के तन-मन को तर-बतर कर देता है। गेर में कोई भी व्यक्ति एक-दूसरे को रंग नहीं लगाता, फिर भी सब एक रंग में रंग जाते हैं।

इस काफिले में शामिल हजारों लोग शाम ढलने तक रंग-गुलाल की चौतरफा बौछारों में भीगने का निर्मल आनंद लेते रहते हैं। रंगे-पुते लोगों के विशाल समूह में चंद घंटों के लिए ही सही, लेकिन सारे भेद धुलते दिखाई देते हैं। इतिहास के जानकार बताते हैं कि शहर में गेर की परंपरा रियासत काल में शुरू हुई, जब होलकर राजवंश के लोग रंगपंचमी पर आम जनता के साथ होली खेलने के लिए सड़कों पर निकलते थे।

जानकारों के मुताबिक इस परंपरा का एक मकसद समाज के हर तबके के लोगों को रंगों के त्यौहार की सामूहिक मस्ती में डूबने का मौका मुहैया कराना भी था। राजे-रजवाड़ों का शासन खत्म होने के बावजूद लोगों ने इस रंगीन रिवायत को अपने सीने से लगाए रखा। वक्त के तमाम बदलावों के बावजूद रंगपंचमी पर शहर में रंगारंग परेड रूपी गेर का सिलसिला बदस्तूर जारी है।

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