गंगा में दीप दान से करें पितरों की विदाई
धरती पर वायु स्वरूप विराजे पितृदेव 27 सितंबर यानी अमावस्या को पितृलोक वापसी करेंगे और फिर अगले साल पितृपक्ष में धरती पर आएंगे। पितरों की विदाई गंगा में दीप दान कर की जाती है। पितर देव शत-शत आशीष देते हैं और घर-परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है।
हरिद्वार। धरती पर वायु स्वरूप विराजे पितृदेव 27 सितंबर यानी अमावस्या को पितृलोक वापसी करेंगे और फिर अगले साल पितृपक्ष में धरती पर आएंगे। पितरों की विदाई गंगा में दीप दान कर की जाती है। पितर देव शत-शत आशीष देते हैं और घर-परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है।
पितरों को देवताओं से भी श्रेष्ठ स्थान दिया गया है। हर साल के आश्िर्र्वन मास के कृष्णपक्ष में पितर धरती पर विराजते हैं। इस समयावधि को ही पितृपक्ष कहा जाता है। पितृपक्ष यानी कि पितरों का पखवाड़ा। पितरों के निमित तर्पण और पिंडदान करने की सनातनी परंपरा आदि काल से चली आ रही है। इस बार पितृ पक्ष तेरह सितंबर से शुरू हो चुके हैं और इनका आधे से भी ज्यादा का सफर पूरा हो चुका है। 27 सितंबर को पितृ पक्ष समाप्त हो जाएंगे और पितर भी वापस पितृ लोक विराजेंगे।
27 सितंबर को आश्िर्र्वन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या है। इस दिन उन पितरों के निमित तो श्राद्ध होगा ही, जिनकी मृत्यु अमावस्या तिथि को हुई थी। इसके अलावा अमावस्या को कुल के समस्त ज्ञात-अज्ञात पितरों के निमित भी श्राद्ध किया जाता है।
अमावस्या को श्राद्ध करने के बाद सूर्यास्त के समय पितरों की विदाई की जाएगी। शास्त्रीय विधान के अनुसार सूर्यास्त के समय गंगा तटों पर चौदह दीप प्र”वलित कर पितरों का सुमिरन करना चाहिए। इसके बाद दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर दीपों को गंगा में प्रवाहित कर पितरों को विदाई करें।
ज्योतिषाचार्य डॉ. प्रतीक मिश्रपुरी और पंडित पवन कृष्ण शास्त्री बताते हैं कि गंगा तट नहीं होने की स्थिति पर पीपल के वृक्ष के चारों ओर दीप प्र”वलित करें।
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