ज्ञान के चरम : उपनिषद
प्रकृति की गोद में वास करने वाले ऋषियों ने उपनिषदों के रूप में मानव के लिए परम ज्ञान का उपहार दिया है, जिसे वेदांत अर्थात ज्ञान का अंतिम सिरा कहा जाता है।
प्रकृति की गोद में वास करने वाले ऋषियों ने उपनिषदों के रूप में मानव के लिए परम ज्ञान का उपहार दिया है, जिसे वेदांत अर्थात ज्ञान का अंतिम सिरा कहा जाता है। प्रमुख उपनिषद इस प्रकार हैं- ऐतरेय उपनिषद, कौशीतकी उपनिषद, ईशोपनिषद, वृहदारण्यकोपनिषद, कठोपनिषद, श्वेतश्वतरोपनिषद, तैत्तिरीय उपनिषद, मैत्रेयणीय उपनिषद, केन उपनिषद, छांदोग्य उपनिषद, मुंडक उपनिषद और मांडूक्य उपनिषद।
इतिहासकारों के अनुसार, ज्ञान को सरल रूप देने के लिए 600 से 300 ईसापूर्व तक सूत्रों और वेदांगों की रचना की गई। वेदांगों की संख्या छह है- शिक्षा, कल्प, निरुक्त, व्याकरण, छंद और ज्योतिष। कल्प वेदांग से तीन सूत्रों की रचना हुई- श्रौत सूत्र, गृहृ सूत्र और धर्म सूत्र।
श्रौत सूत्र में यज्ञीय विधि-विधानों का वर्णन है। गृच्ह़ सूत्र में गृह के कार्यो व यज्ञों का विवरण है, वहीं धर्म सूत्र में राजनीति, विधि एवं व्यवहार से संबंधित विषयों का वर्णन किया गया है।
साभार : देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार
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