रिंगाल की कंडी में गंगाजी की सौगात
आप गंगा जी के दर्शनों को गंगोत्री जा रहे हैं तो रिंगाल की कंडी साथ ले जाना न भूलें।
देहरादून। आप गंगा जी के दर्शनों को गंगोत्री जा रहे हैं तो रिंगाल की कंडी साथ ले जाना न भूलें। यह ऐसी सौगात है, जिसमें आप गंगाजी के आशीर्वाद के साथ उन सैकड़ों ग्रामीणों की दुआएं भी ले जाएंगे, जिनके हाथों ने इन्हें खूबसूरत आकार दिया। लेकिन, ऐसा संभव हो पाया उत्तराखंड हस्तशिल्प एवं हथकरघा विकास परिषद के प्रयासों से।
परिषद ने गंगोत्री मंदिर समिति के साथ मिलकर उस सपने को आकार दिया, जो स्थानीय ग्रामीणों को चारधाम यात्रा से जोड़ता है। इसके लिए एनआइडी (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजायनिंग) अहमदाबाद से प्रशिक्षक बुलाकर उत्तरकाशी जनपद के तीन गांवों में ग्रामीणों को रिंगाल की कंडी बनाने की ट्रेनिंग दी गई। अब यही ग्रामीण खुद कंडियां तैयार कर उन्हें हिमाद्रि शिल्प इंपोरियम के माध्यम से गंगोत्री मंदिर समिति को बेच रहे हैं। अच्छी खबर यह है कि एनआइडी से प्रशिक्षण प्राप्त ग्रामीण अन्य ग्रामीणों को भी प्रशिक्षित कर रहे हैं। इस प्रयास के चलतेकपाट खुलने से पूर्व गत 16 अप्रैल को 500 कंडियों की पहली खेप मंदिर समिति को सौंप जा चुकी है। फिलहाल इस यात्रा सीजन के लिए 50 हजार कंडियां तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है। कंडी की खूबी यह है कि इसमें यात्री को समलौण (सौगात) के रूप में स्थानीय फूल, प्रसाद व गंगाजली भी भेंट की जाती है।
कंडी की कीमत 35 रुपये रखी गई है। इसमें से 30 रुपये संबंधित ग्रामीण (शिल्पकार) को दिए जाते हैं और पांच रुपये हिमाद्रि के हिस्से आते हैं। फूल, प्रसाद व गंगाजली के साथ इसकी कीमत सौ रुपये बैठती है।
ग्रामीण कंडी के साथ लैंप सेट, फ्रूट बास्केट आदि उत्पाद भी तैयार कर रहे हैं। कोशिश है कि अगले साल यमुनोत्री मंदिर समिति के साथ भी ऐसा ही करार हो जाए। स्थानीय ग्रामीणों को चारधाम यात्रा से जोड़ने के लिए जरूरी था कि क्षेत्र में उपलब्ध संसाधनों से रोजगार पैदा किया जाए। यह संस्कृति एवं परंपराओं के संरक्षण की दिशा में भी महत्वपूर्ण पहल है।
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