दस साल बाद शिवरात्रि सोमवार को
फाल्गुन कृष्णचतुर्दशी सोमवार को महाशिवरात्रि का दुर्लभ संयोग बन रहा है। यह वो पावन अवसर है जब देवाधिदेव महादेव भक्तों की हर इच्छा पूरी करेंगे। श्रद्धा भाव से भोलेनाथ को पूजने से मानव के हर रुके कार्य पूर्ण होंगे। शिवरात्रि से ही प्रयाग में चल रहे कल्पवास का विधिवत समापन हो जाएगा। संगम क्षेत्र में जप-तप कर रहे कल्पवासी व संत गंगा स्नान कर अपने मठ-मंदिरों में पुन: लौट जाएंगे।
इलाहाबाद, जागरण संवाददाता। फाल्गुन कृष्णचतुर्दशी सोमवार को महाशिवरात्रि का दुर्लभ संयोग बन रहा है। यह वो पावन अवसर है जब देवाधिदेव महादेव भक्तों की हर इच्छा पूरी करेंगे। श्रद्धा भाव से भोलेनाथ को पूजने से मानव के हर रुके कार्य पूर्ण होंगे। शिवरात्रि से ही प्रयाग में चल रहे कल्पवास का विधिवत समापन हो जाएगा। संगम क्षेत्र में जप-तप कर रहे कल्पवासी व संत गंगा स्नान कर अपने मठ-मंदिरों में पुन: लौट जाएंगे।
ज्योतिर्विद आचार्य अविनाश राय के अनुसार रविवार की मध्य रात्रि से सोमवार की मध्यरात्रि तक शिव पूजन का विशेष मुहूर्त है। अभिष्ट सिद्धि के लिए सोमवार की रात 12.04 से 2.21 बजे तक पूजन करना चाहिए। श्री राय के अनुसार सोमवार को मंगल व शनि के वक्री रहने से साधक की हर इच्छा पूरी होगी। खासकर जिन युवक व युवतियों का विवाह न हो रहा हो वह शिवरात्रि को सफेद तिल, चीनी मिले गाय के दूध, सफेद फूल व सफेद चंदन से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं तो एक वर्ष के अंदर विवाह हो जाएगा। रुद्राभिषेक व उसका महत्व
आचार्य अविनाश राय के अनुसार महाशिवरात्रि पर शिवलिंग का अलग-अलग चीजों से रुद्राभिषेक कराने का विशेष महत्व होता है।
पदार्थ का नाम व होने वाला फायदा
गंगाजल: मानसिक एवं शारीरिक शांति।
गाय के दूध: अभिलाषा की पूर्ति।
गन्ने कारस: धन की प्राप्ति।
शहद से: रोग का नाश होगा।
कुषायुक्त जल: व्याधि की शांति होगी।
दही से: परिजनों के प्रेम की प्राप्ति।
गाय का घी: मोक्ष की प्राप्ति।
सरसों कातेल: शत्रु का नाश होगा।
दस वर्ष बाद आया दुर्लभ संयोग ज्योतिर्विद उमेश शर्मा के अनुसार महाशिवरात्रि पर दिन सोमवार श्रवण एवं चतुर्दशी नक्षत्र का दुर्लभ संयोग दस वर्ष के बाद आया है। यह ऐसा संयोग है जो मानव की हर इच्छा की पूर्ति करेगा। संगम पहुंचे कांवरिये
महाशिवरात्रि पर भोलेबाबा का अभिषेक करने के लिए प्रयाग में कांवरियों का जत्था पहुंचने लगा है। इससे संगम क्षेत्र, दशाश्र्र्वमेधघाट, रामघाट आदि स्थानों पर कांवरियों की भारी भीड़ हो गई है। गेरूआ वस्त्रधारी कांवरिया बोल बम, भोलेबाबा का जयघोष करते हुए संगम क्षेत्र पहुंच रहे हैं। यहां से गंगाजल भरकर पैदल ही काशी जा रहे हैं।
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