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पुण्य की गठरी, गंगा को प्रणाम

त्रिवेणी के तट पर मिली धार्मिक शिक्षा, संतों द्वारा दिलाए गए संकल्प। सुबह-शाम संत-महात्माओं के शिविर में होने वाले प्रवचन, भजन, कीर्तन से मिली आध्यात्मिक ऊर्जा एवं गंगा मइया का आशीष लेकर कल्पवासी प्रयाग से रवाना हुए

By Edited By: Published: Tue, 26 Feb 2013 01:15 PM (IST)Updated: Tue, 26 Feb 2013 01:15 PM (IST)
पुण्य की गठरी, गंगा को प्रणाम

कुंभनगर [शरद द्विवेदी]। त्रिवेणी के तट पर मिली धार्मिक शिक्षा, संतों द्वारा दिलाए गए संकल्प। सुबह-शाम संत-महात्माओं के शिविर में होने वाले प्रवचन, भजन, कीर्तन से मिली आध्यात्मिक ऊर्जा एवं गंगा मइया का आशीष लेकर कल्पवासी प्रयाग से रवाना हुए। माघी पूर्णिमा पर सुबह गंगा में डुबकी लगाने के साथ कल्पवासियों की तपस्या पूरी हुई। इसके साथ ही लगभग दो लाख कल्पवासी अपनी घर-गृहस्थी में पुन: लौट गए। वह यहां से स्वयं द्वारा किए गए दान-पुण्य व धार्मिक कृत्यों से अर्जित की गई संस्कारों एवं पुण्य की गठरी साथ ले गए, जिसे पाने के लिए उन्होंने पौष पूर्णिमा से रेती पर रहकर कड़ी तपस्या की।

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प्रयाग की पावन भूमि पर कल्पवास की प्राचीन परंपरा है। सृष्टि की रचना के लिए परमपिता ब्रहमा जी ने यहीं पर यज्ञ किया। इसके बाद यह भूमि ऋषियों की तपस्थली बनी। राजा हर्षवर्धन मोक्ष की आस में यहां अपना सर्वस्व न्यौछावर करने आते थे। उसी कामना के साथ आम श्रद्धालु भी माघ मास में मोह-माया की दुनिया से परे कल्पवास करने लगे। संतों के सानिध्य में जप-तप करने के साथ दिन में तीन बार गंगा स्नान, एक समय भोजन करके अपना समय बिताया। परमात्मा की प्राप्ति की आस में दिनभर भजन-कीर्तन में लीन रहे। कुंभ पर्व होने के कारण हजारों श्रद्धालुओं ने मकर संक्त्रांति से ही यहां डेरा जमा लिया। उन्होंने अखाड़ों के साथ मकर संक्त्रांति, मौनी अमावस्या एवं वसंत पंचमी पर स्नान कर पुण्य अर्जित किया। कुछ कल्पवासी कुंभ पर्व के अंतिम स्नान पर्व महाशिवरात्रि तक यहां रुकेंगे। शिवरात्रि का स्नान करने के बाद प्रयाग की भूमि पर अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के बाद पुण्य अर्जित करके यहां से रवाना होंगे।

गंगा छोड़ते छलक उठी आंखे

कल्पवासियों ने प्रयाग छोड़ने से पहले गंगा मइया का विधि-विधान से पूजन किया। सबने गंगा का पूजन कर पूर्वजों की आत्मा की शांति एवं खुद के कल्याण की कामना की। फिर अगले वर्ष पुन: आने का संकल्प लेकर इस पावन भूमि से रवाना हुए। इसका सिलसिला सुबह से लेकर पूरी रात चलता रहा। गंगा से विदा लेते समय कल्पवासियों की आंखें छलक रही थीं।

जौ का पौधा, तुलसी बिरवा साथ

प्रयाग छोड़ते समय कल्पवासी शिविर के बाहर बोया गया जौ का पौधा एवं तुलसी का बिरवा साथ ले गए। वह उसे अपने घर में सबसे पवित्र स्थान पर रखेंगे। ऐसी मान्यता है कि प्रयाग में बोया गया जौ गंगा मइया का सबसे अनमोल भेंट होती है, जिसे पूजाघर एवं अन्य पवित्र स्थान पर रखने से बरक्कत आती है।

दान किया सामान

श्रद्धालुओं ने प्रयाग छोड़ते समय साथ लाए खाने-पीने वाले सामान तीर्थ पुरोहितों में दान कर दिया। जो दान नहीं कर पाए, उन्होंने उसे घर पहुंच दान देने का संकल्प लिया।

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