Move to Jagran APP

मन गंगाहि गंगा गोहरायो

नागवासुकी मंदिर से संगम की ओर जाने के लिए ऊपर की ओर बढ़ता हूं, तभी कानों में एक सामूहिक लोकगीत सुनाई देता है। सिर पे बोरा, दोनों कांधे झोरा टांके ग्रामीण महिलाएं गंगा मइया को संबोधित करते हुए गा रही हैं। उनकी बोली समझ में नहीं आती।

By Edited By: Published: Sat, 09 Feb 2013 03:24 PM (IST)Updated: Sat, 09 Feb 2013 03:24 PM (IST)
मन गंगाहि गंगा गोहरायो

नागवासुकी मंदिर से संगम की ओर जाने के लिए ऊपर की ओर बढ़ता हूं, तभी कानों में एक सामूहिक लोकगीत सुनाई देता है। सिर पे बोरा, दोनों कांधे झोरा टांके ग्रामीण महिलाएं गंगा मइया को संबोधित करते हुए गा रही हैं। उनकी बोली समझ में नहीं आती। मैं आगे बढ़ जाता हूं।

loksabha election banner

किले के पास से संगम स्नान के लिए नाव लेता हूं। केवट भोला मेरे साथ कुछ और यात्रियों को बैठाकर पुलिस की लाठी से डरता-डरता जल्दी से नाव आगे बढ़ाता है। गंगा किनारे पुलिस नाववालों को टिकने नहीं दे रही है। मौनी अमावस्या ज्यों-ज्यों नजदीक आ रही है, भीड़ बढ़ती जा रही है । नाव संगम किनारे लगती है। जैसे ही गंगा-यमुना के संगम को प्रणाम कर स्नान के लिए पानी में उतरता हूं। पीछे से फिर वैसे ही स्वर सुनाई देते हैं, जैसे नागवासुकी मंदिर के पास सुनाई दिए थे। पीछे घूमता हूं, तो पांच-छह महिलाएं हाथ से हाथ जोड़े डुबकी मारते हुए लोकगीत गा रही हैं।

बोली समझ में नहीं आती, मैं स्वयं स्नान-ध्यान-अ?र्घ्य में लग जाता हूं।

स्नान करके नाव पर लौटता हूं। भोला नाव को पुन: किले की ओर खेना शुरू करता है। साइबेरिया से आए पक्षी मेहमानों को दाना चुगाते हुए गंगा-यमुना के जल के अलग-अलग रंगों, भवंरों-तरंगों का आनंद लेते हुए आगे बढ़ ही रहा था कि हमारी नाव से ही पुन: स्वर गूंजने लगा - मन गंगहिं गंगा गोहरायो, गंगा नाहि बोलहिं, सासु कहैं मोहि बांझ ननद निरवंसिन, जेकर हम बारी बियाही हमैं ऊ घर से निकारै । नाव पर बैठी मेरी दो सहयात्रिनें ऊषा मिश्रा एवं उर्मिला मिश्रा एक राग से वही गाना गा रही थीं, जो कुछ ही देर पहले नागवासुकी मंदिर एवं संगम में नहाते समय सुन चुका था । गीत के बोल समझ नहीं पा रहा था, इसलिए गाना खत्म होते ही उनसे पूछ बैठा कि क्या गा रहीं थीं वे । गंगा मइया का सोहर गा रही थी - बताते हुए 55 वर्षीय ऊषा मिश्रा यह बताना भी नहीं भूलतीं कि उनका नैहर मिर्जापुर के बीजरकलां गांव में गंगा नदी के बिल्कुल किनारे बसा है। उर्मिला मिश्रा का गांव गाजीपुर स्थित देवचंदपुर भी गंगा किनारे बसा है। गंगा की गोद में बचपन गुजारनेवाली दोनों महिलाएं अब गंगा छोड़ गोदावरी के किनारे स्थित नासिक (महाराष्ट्र) में रहती हैं। लेकिन गंगा आज भी उनकी रग-रग में हिलोरें लेती हैं।

अपने गाए लोकगीत का अर्थ बताते हुए ऊषा मिश्रा कहती हैं कि इस सोहर में महिलाएं पुत्र न होने पर सास-ननद द्वारा ताना देने की शिकायत करते हुए गंगा मइया से एक पुत्र प्रदान करने की मनौती मांगती हैं। यह मनौती पूरी होने पर गंगा मइया का सोहर गाया जाता है। सोहर ही नहीं, गंगा मइया से संबंधित और भी कई लोकगीत हमें याद हैं, यह कहते हुए ऊषा मिश्र यह बताना नहीं भूलतीं कि गंगा किनारे गांव होने के कारण उनके गांव में पहले कुआं और हैंडपंप नहीं हुआ करता था। पीने का पानी भी गंगा से आता था। गांव भर के लिए गंगा जैसे जीवनदायी थीं, गांव के अनपढ़ ग्रामीण भी गंगा की पवित्रता का उतना ही ख्याल रखते थे। ऊषा देवी की बात खत्म होते-होते कब गंगा का किनारा आ गया, पता ही नहीं चला । ध्यान तब टूटा जब भोला जल्दी से नाव खाली करने के लिए कहने लगा । नाव से उतरते समय फिर ध्यान किनारे लगे गंगा के पानी पर गया। जहां आज आचमन भी नहीं किया जा सकता था।

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.