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दीक्षित संन्यासी बनता शंकराचार्य

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के 90वें जन्मदिन पर श्री विद्यामठ में विद्वत सभा द्वारा मंगलवार को स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का नाम ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य के लिए प्रस्तावित किया गया। तय हुआ कि इसपर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के सामने प्रस्ताव रख उनसे सहमति का निवेदन किया जाएगा।

By Edited By: Published: Fri, 21 Sep 2012 11:50 AM (IST)Updated: Fri, 21 Sep 2012 11:50 AM (IST)
दीक्षित संन्यासी बनता शंकराचार्य

वाराणसी। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के 90वें जन्मदिन पर श्री विद्यामठ में विद्वत सभा द्वारा मंगलवार को स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का नाम ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य के लिए प्रस्तावित किया गया। तय हुआ कि इसपर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के सामने प्रस्ताव रख उनसे सहमति का निवेदन किया जाएगा।

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हर आम आदमी यह जानना चाहता है कि आखिर कैसे होता है सर्वोच्च हिंदू धर्म गुरु का चुनाव। इस संबंध में बात की गई कल्कि पीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम् से। उन्होंने जो बताया उसके अनुसार- शंकराचार्य वही हो सकता है जो ब्रह्मण कुल में जन्मा दशनामी परंपरा से दीक्षित संन्यासी हो, वेदांत ग्रंथों का अध्ययन किया हो। ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए उसके सभी संस्कार उसी परंपरा के अनुसार हुए हों।

जगदगुरु आदि शंकराचार्य ने भारत के चारों कोनों में स्थित चारों पीठों, उत्तर में ज्योतिष पीठ, दक्षिण में श्रृंगेरी पीठ, पश्चिम में द्वारिकाशारदा पीठ, पूर्व में पुरी पीठ की स्थापना की। साथ ही अपने चार शिष्यों को शंकराचार्य नाम से पद स्थापित किया। यह परंपरा आज भी चली आ रही है। सनातन धर्म के उन्नयन के लिए इन पीठों को सर्वदा संचालित करने के लिए उन्होंने मठाम्नाय महानुशासनम नामक पुस्तक की रचना भी की ताकि भविष्य में शंकराचार्य पीठ पर मनोनयन को लेकर कोई विवाद खड़ा न हो। कल्कि पीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम् ने बताया कि एक शंकराचार्य के रहते दूसरा नहीं होता। काया जब पूर्ण (ब्रह्मलीन) हो जाती है तो उस पीठ से जुड़े आचार्य, अन्य तीन पीठों के शंकराचार्य और देश के मूर्धन्य विद्वान शंकराचार्य का नाम प्रस्तावित करते हैं। यदि कोई शंकराचार्य ब्रह्मलीन होने से पहले अपने किसी योग्य शिष्य को शंकराचार्य पद के लिए नामित कर देते हैं तो सारे शंकराचार्य, आचार्य व विद्वान एक मत होकर उनका अभिषेक कर देते हैं। यदि कोई नामित नहीं है तो आचार्य में शांकर संन्यासी की अर्हता के साथ-साथ शुचिता, जितेंद्रीयता, वेदवेदांग में पारंगत तथा सर्व शास्त्रसमन्वय स्थापित करने वाले को सर्वसम्मति से शंकराचार्य घोषित किया जाता है।

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