पूर्ण हुई नवद्वारों की साधना
देवी सिद्धिदात्री मां भगवती का पूर्ण रूप हैं। हमने अपनी कल्पनाओं को मां के सम्मुख रखकर श्रद्धा-भक्ति के साथ आठ दिन जो पूजा की, उसे सिद्धि के रूप में अर्पित करने का दिन है महानवमी। नवें दिन प्रार्थना ही प्रार्थना है। यह पुण्य का ऐसा दिवस है, जब स्त्रोत व मंत्रों का श्रवण कर मां का यज्ञाभिषेक होता है।
देहरादून। देवी सिद्धिदात्री मां भगवती का पूर्ण रूप हैं। हमने अपनी कल्पनाओं को मां के सम्मुख रखकर श्रद्धा-भक्ति के साथ आठ दिन जो पूजा की, उसे सिद्धि के रूप में अर्पित करने का दिन है महानवमी। नवें दिन प्रार्थना ही प्रार्थना है। यह पुण्य का ऐसा दिवस है, जब स्त्रोत व मंत्रों का श्रवण कर मां का यज्ञाभिषेक होता है।
श्रीमद् देवी भागवत पुराण में कहा गया है कि नवमी को विचारों के मतभेद और संशयों को मिटाकर ही मां का पूजन करें। तभी नौ दिन के कार्यो की सिद्धि के रूप में मां का आशीर्वाद प्राप्त होगा। आचार्य डॉ.संतोष खंडूड़ी कहते हैं कि इस दिन दूर्वा अंकुर व रक्तवर्णी पुष्प से पूजन के साथ मां भगवती के पंचामृत अभिषेक का विधान है, लेकिन यज्ञ अष्टमी से ही प्रारंभ हो जाना चाहिए। नवमी पर जौ की हरियाली के पूर्णाभिषेक के बाद उसे मां को अर्पित किया जाता है। फिर इसी हरियाली को प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता है।
आचार्य डॉ.सुशांतराज कहते हैं कि देवभूमि की प्राचीन परंपरा के अनुसार महाष्टमी वहीं मनाई जाती है, जहां बलि प्रथा प्रचलित रही है। जहां ऐसी प्रथा नहीं थी, वहां नवमी को ही देवी पूजन होता है। अष्टमी तांत्रोक्त पूजा का दिन है, जबकि नवमी सात्विक पूजा का।
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