श्रद्धालुओं ने किए गुरुद्वारा श्री पंजा साहिब के दर्शन
भारत से शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अमृतसर व शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की ओर से पाकिस्तान के सिख धर्म से संबंधित गुरुधामों की यात्रा पर गए सिख श्रद्धालुओं का रविवार को पाकिस्तान के शहर हसन अबदाल में पहली पातशाही श्री गुरु नानक देव के पवित्र व ऐतिहासिक स्थान गुरुद्वारा श्री पंजा साहिब में पहुंचने पर पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, पाकिस्तान वक्फ बोर्ड व वहां के लोगों द्वारा भव्य स्वागत किया गया।
श्री पंजा साहिब [पाकिस्तान]। भारत से शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अमृतसर व शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की ओर से पाकिस्तान के सिख धर्म से संबंधित गुरुधामों की यात्रा पर गए सिख श्रद्धालुओं का रविवार को पाकिस्तान के शहर हसन अबदाल में पहली पातशाही श्री गुरु नानक देव के पवित्र व ऐतिहासिक स्थान गुरुद्वारा श्री पंजा साहिब में पहुंचने पर पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, पाकिस्तान वक्फ बोर्ड व वहां के लोगों द्वारा भव्य स्वागत किया गया।
जत्था इंद्र इकबाल सिंह अटवाल, संता सिंह उमैदपुर व बल¨वद्र सिंह एमए के नेतृत्व में शनिवार की शाम ननकाणा साहिब से रवाना हुआ। ये जत्था 400 किलोमीटर की दूरी तय कर गुरुद्वारा श्री पंजा साहिब पहुंचा। सिख श्रद्धालुओं ने गुरुद्वारा श्री पंजा साहिब के दर्शन किए। उन्होंने श्री अखंड पाठ साहिब शुरू करवाया, जिसका 26 जून को भोग डाला जाएगा। सिख श्रद्धालुओं ने पहली पातशाही श्री गुरुनानक देव जी के पत्थर पर लगे पंजे के निशान के दर्शन किए और गुरु जी द्वारा प्रकट किए पानी के चश्में में स्नान कर अपनी आत्मा को पवित्र किया। ये वह एतिहासिक स्थान है, जहां गुरु नानक देव जी अपने साथी भाई बाला व मरदाना सहित पहुंचे थे। जब भाई मरदाना जी को प्यास लगी तो गुरु जी ने कुछ ही दूर पहाड़ी पर रहते महंत वली कंधारी से पानी लाने भेजा, तो उन्होंने पानी देने से इन्कार कर दिया। गुरु जी ने भाई मरदाना को दो बार पानी मांगने के लिए भेजा और वली कंधारी ने कहा कि अगर उनके गुरु सचमुच ही शक्ति वाले हैं तो वह पानी का प्रंबंध कर लें। ये बात भाई मरदाना ने गुरु जी को बताई, जिस पर गुरु नानक देव जी ने निकट पड़े एक पत्थर के नीचे ये पानी का चश्मा प्रकट कर दिया, जिस कारण पहाड़ी पर बैठे वली कंधारी के कुएं का पानी सूख गया और गुस्से में आकर वली कंधारी ने एक विशाल पत्थर गुरु जी तरफ फेंका, जिसे गुरु जी ने अपने हाथ का पंजा लगाकर रोक दिया। उस पत्थर पर आज भी गुरु जी के हाथ के पंजे का निशान अंकित है, जिसके श्रद्धालु श्रद्धा से दर्शन करते हैं।
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