Move to Jagran APP

दीया-बाती तैयार बस जोत का इंतजार

सात वार नौ त्योहार की नगरी काशी के घाटों पर मंगलवार को अनूठी छटा बिखर आई। बुधवार की शाम इन पर सजेगा कार्तिक मास के उत्सवी गुलदस्ते का आखिरी महापुष्प देवदीपावली के रूप में। हर घाट पर पुरनूर सितारों को बारात नजर आएगी।

By Edited By: Published: Wed, 28 Nov 2012 02:53 PM (IST)Updated: Wed, 28 Nov 2012 02:53 PM (IST)
दीया-बाती तैयार बस जोत का इंतजार

वाराणसी। सात वार नौ त्योहार की नगरी काशी के घाटों पर मंगलवार को अनूठी छटा बिखर आई। बुधवार की शाम इन पर सजेगा कार्तिक मास के उत्सवी गुलदस्ते का आखिरी महापुष्प देवदीपावली के रूप में। हर घाट पर पुरनूर सितारों को बारात नजर आएगी। माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर देवता धरती पर उतर आते हैं।

loksabha election banner

इस मान्यता को अंगीकार-स्वीकार किए धर्ममना काशी ने अगवानी के लिए पलक पांवड़े बिछाए हैं। हालांकि इसकी तैयारियां कार्तिक की शुरूआत के साथ शुरू हो गई थीं लेकिन आयोजन से जुड़े इन्हीं उत्साही लोगों के साथ गंगा के पथरीले घाट पूरी रात जागते रहे। कार्तिक पूर्णिमा की शाम होते ही लाखों दीपों की रोशनी से आदिकेशव से रमना तक गंगा के घाट नहा उठेंगे। उस पार व्यास काशी की रेत भी सुनहले रंग में दपदपाएगी तो अस्तित्व के लिए संघर्षरत वरुणा तट स्थित स्थित घाटों के भी अपने ठाट होंगे। दशाश्वमेध, पंचगंगा, अस्सी जैसे प्रमुख घाटों पर देव दीपावली पर गंगा आरती की विशेष तैयारी की गई है। बुधवार को काफी संख्या में देसी-विदेशी सैलानी मात्र देव दीपावली के मद्देनजर नगर में पहुंचे। एक दिन पहले मुंहमांगे दाम देने को तैयार लेकिन ढूंढने से भी नाव-बजड़े बुकिंग के लिए नहीं मिले। अलग-अलग घाटों पर छोटी-बड़ी समितियों ने दीया, बाती और तेल आदि का इंतजाम कर लिया है अब उन्हें सिर्फ कार्तिक पूर्णिमा पर इन दीयों में ज्योति जलाने का इंतजार है। गंगा के गले में चंद्रहार की तरह 15 लाख से अधिक दीये प्रकाश पुलक हो जाग उठेंगे। इंद्रधनुष से बिखरने वाले चटख रंगो में तन-मन को भिगोने को समूची काशी उतावली है। इसके लिए योजनाएं भी बनकर तैयार हैं।

गंगा नहीं बचेगी तो.नहीं बचेगा देश -

भारत जैसे धार्मिक व सांस्कृतिक कहे जाने वाले देश में नदी कुंडो पर आए संकट और शासन प्रशासन की इसके प्रति अरूचि जैेसे किसी भयावह आपदा का पूर्वाभ्यास करा रही है। गो मुख से बंगाल की खाडी़ तक सदा नीरा कही जाने वाली सबकी सदगति बनाने वाली गंगा आज अपने ही लाडलों पर तरस खाती दुर्गति को प्राप्त है। गंगा महज एक नदी नहीं एक आस्था विश्वास और एक सभ्यता है। एक संस्कृति एक आचरण औरक एक सर्वव्यापी जीवन दायिनी साहित्य है। जिसकी दुर्गति भारतीय संस्कृति की दुर्गति है। अगर हम बनारस शहर की बात करें तो इस शहर को वाराणसी नाम देने वाली वरुणा और असी नदियां हैं। आज असी तो विलुप्त हो नाले की गाली सुनने को मजबूर शहर का गंदा पानी ढो रही है। वरूणा भी उसी पथ पर अग्रसर है। पतित पावनी गंगा की भी हालत भी बिगड़ती जा रही है। इसके सजल संचार के लिए कछुआ सेंचुरी के नाम पर सरकारी अनुदानों का ईमानदारी से उपयोग होना चाहिए। सच तो यह है कि गंगा के नाम पर जितनी रकम सरकारी गैर सरकारी अनुदानों का इमानदारी से उपयोग होना चाहिए नहीं हुआ। वास्तव में गंगा के सवाल पर सब को अपनी चौखट से बाहर आना होगा। गंगा सिर्फ देश ही नहीं पूरे ब्रंांड की नदी है। गंगा नहीं बचेगी तो देश भी संकट में पड़ जाएगा।

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.