श्रीकृष्ण आत्माराम हैं
जगत जननी राधा को भगवान श्रीकृष्ण की आह्लादिनी शक्ति माना गया है। यानी राधा के कारण श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं। पद्म पुराण में कहा गया है कि राधा श्रीकृष्ण की आत्मा हैं। महर्षि वेदव्यास ने लिखा है कि श्रीकृष्ण आत्माराम हैं और उनकी आत्मा राधा हैं।
जगत जननी राधा को भगवान श्रीकृष्ण की आह्लादिनी शक्ति माना गया है। यानी राधा के कारण श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं। पद्म पुराण में कहा गया है कि राधा श्रीकृष्ण की आत्मा हैं। महर्षि वेदव्यास ने लिखा है कि श्रीकृष्ण आत्माराम हैं और उनकी आत्मा राधा हैं। श्रीहरिवंश महाप्रभु ने तो श्रीराधा को श्रीकृष्ण से भी अधिक प्रधानता दी है। उन्होंने उन्हें अपना इष्ट और गुरु दोनों ही माना है। उन्होंने अपने संप्रदाय का नाम भी श्रीराधावल्लभ संप्रदाय रखा। जो भी हो, ब्रज में राधा की श्रीकृष्ण से अधिक मान्यता है। यहां हरेक शुभ कार्य का श्रीगणेश श्री राधे के स्मरण से एवं अभिवादन राधे-राधे कहकर किया जाता है, आखिर राधा लोक पितामह ब्रह्मा एवं भगवान शिव तक की भी वंदनीय और उपास्य जो हैं। एक कथा के अनुसार, ब्रह्माजी द्वारा वरदान प्राप्त कर राजा सुचंद्र एवं उनकी पत्नी कलावती कालांतर में वृषभानु एवं कीर्तिदा हुए। इन्हीं की पुत्री के रूप में राधारानी ने मथुरा के गोकुल-महावन कस्बे के निकट रावल ग्राम में जन्म लिया। श्रीराधा के जन्म के संबंध में कहा जाता है कि वृषभानु भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को जब एक सरोवर के पास से गुजर रहे थे, तो उन्हें एक कुंज की झुकी वृक्षावलि के पास एक बालिका कमल के फूल पर तैरती हुई मिली, जिसे उन्होंने अपनी पुत्री के रूप में अपना लिया। कथा के अनुसार, बाद में वृषभानु कंस के अत्याचारों से तंग होकर रावल से बरसाना चले गए। एक बार जब कंस, वृषभानु जी को मारने के लिए अपनी सेना सहित बरसाना की ओर चला तो वह बरसाना की सीमा में घुसते ही स्त्री बन गया और उसकी सारी सेना पत्थर की बन गई। जब देवर्षि नारद बरसाना आए तो कंस ने उनके पैरों पर पड़कर सारी घटना सुनाई। नारद जी ने इसे राधा जी की महिमा बताई। वे उसे वृषभानु जी के महल में ले गए। कंस के क्षमा मांगने पर राधा ने उससे कहा कि अब तुम यहां छह महीने गोपियों के घरेलू कामों में मदद करो। कंस ने ऐसा ही किया। छह माह बाद उसने जैसे ही वृषभानु कुंड में स्नान किया, वह अपने पुरुष वेश में आ गया। फिर कभी उसने बरसाना की ओर मुड़कर नहीं देखा। रस साम्राज्ञी राधा रानी ने नंदगांव में नंद बाबा के पुत्र के रूप में रह रहे भगवान श्रीकृष्ण के साथ समूचे ब्रज में आलौकिक लीलाएं कीं, जिन्हें पुराणों में माया के आवरण से रहित जीव का ब्रह्म के साथ विलास बताया गया है। एक किंवदंती के अनुसार, एक बार जब श्रील नारायण भट्ट बरसाना स्थित ब्रह्मेश्वर गिरि पर गोपी भाव से विचरण कर रहे थे, उन्होंने देखा कि राधा रानी भी भगवान श्रीकृष्ण के साथ विचरण कर रही हैं। राधा जी ने उनसे कहा कि इस पर्वत पर मेरी एक प्रतिमा विराजित है, उसे तुम अ?र्द्धरात्रि में निकालकर उसकी सेवा करो। भट्ट जी इस प्रतिमा का अभिषेकादि कर पूजन करने लगे। इसके बाद ब्रह्मेश्वर गिरि पर राधा रानी का भव्य मंदिर बनवाया गया, जिसे श्रीजी का मंदिर या लाडिली महल भी कहते हैं। राधा रानी की श्रीकृष्ण में अनन्य आस्था थी। वह उनके लिए हर क्षण अपने प्राण तक न्योछावर करने के लिए तैयार रहती थीं। विभिन्न पुराण, धार्मिक ग्रंथ एवं अनेक विद्वानों की पुस्तकें उनकी यशोगाथा से भरी पड़ी हैं। राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र में कहा गया है कि अनंत कोटि बैकुंठों की स्वामिनी लक्ष्मी, पार्वती, इंद्राणी एवं सरस्वती आदि ने राधा रानी की पूजा-आराधना कर उनसे वरदान पाया था। राधा चालीसा में कहा गया है कि जब तक राधा का नाम न लिया जाए, तब तक श्रीकृष्ण का प्रेम नहीं मिलता। वृंदावन में राधाष्टमी पर सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र श्रीराधावल्लभ मंदिर रहता है। इस मंदिर में युगल उपासना की परंपरा है। यहां राधा रानी के जन्म की खुशी में जमकर दधिकादा होता है। पूरा मंदिर राधा प्यारी ने जन्म लियो है. की गूंज से भर जाता है। रात्रि को श्रीराधावल्लभ की सवारी निकाली जाती है। इसके अलावा वृंदावन में अनेक मंदिरों व धार्मिक स्थलों पर भी राधा रानी का जन्मोत्सव राधाष्टमी पर्व के रूप में अत्यधिक धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर