सत्य की साधना जीवन को संपूर्ण बनाती है
महाराजा अग्रसेन सदाव्रत अन्न क्षेत्र में आयोजित राम कथा में प्रवचन करते हुए विनीत गिरी महाराज ने कहा कि सत्य की साधना जीवन को संपूर्ण बनाती है। इसके अभाव में भाव की कोई पावन धारा प्रवाहित नहीं होती।
जींद। महाराजा अग्रसेन सदाव्रत अन्न क्षेत्र में आयोजित राम कथा में प्रवचन करते हुए विनीत गिरी महाराज ने कहा कि सत्य की साधना जीवन को संपूर्ण बनाती है। इसके अभाव में भाव की कोई पावन धारा प्रवाहित नहीं होती। अपने असत्य को सत्य का आवरण पहनाकर प्रचलित करने वाले का सामयिक विश्वास कर लिया जाता है, पर जब आवरण भंग होता है तो अशांति, लज्जा, अप कीर्ति और हानि की अनुभूति होती है। कबीर कहते हैं-सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। असत्य की सफलता कभी नहीं होती, सत्याभास की होती है। जब सत्याभास की इतनी सफलता संसार में प्रतीत होती है, तब शुद्ध सत्य की सफलता निश्चित ही शाश्वत और असीम होगी, यह परम सत्य है। झूठ बोलने का जिनका स्वभाव ही है उनकी अप कीर्ति होती है, वे तो जीवित होकर भी मृतक तुल्य हैं। जो बात इंद्रियों ने जैसा ग्रहण की है, बुद्धि ने स्वीकार की है, वैसे ही उपयुक्त अवसर पर वर्णन करके उसमें प्रमाद न करना सत्य है। कोई कार्य अपने कारण के विरुद्ध जीवित नहीं रह सकता। सत्य जीवन का आधार, जीवन सत्य का इतिहास है। प्रिय सत्य वाणी श्रेष्ठ है, अप्रिय सत्य, प्रिय झूठ न बोलना धर्म है। बारह वर्ष तक सत्य की निरंतर आराधना करने पर वाक सिद्धि मिलती है। सत्यव्रत वाले प्राय: कष्टप्रद देखे जाते हैं, यह भ्रम है। चार कारणों से लोग असत्य बोलते हैं, जिनमें अज्ञानता वश, स्वभाव वश, परवश, स्वार्थवश शामिल है। उन्होंने कहा कि मनुष्य को हमेशा सच का साथ देना चाहिए। भगवान श्रीराम ने हमेशा मर्यादा में रहते हुए सारे काम किए, इसलिए वे मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से जाने जाते हैं।
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