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संसारिक सुख क्षणभंगूर है

यह संसार एक बहुत बड़ा, आकर्षक बाजार है। यहां वही ग्राहक प्रिय, आत्मीय, स्वजन, सुरुचिकर व आत्मीय लगता है जो इस बाजार से आकर्षक वस्तुएं क्रय कर बदले में आकर्षक मुद्राएं भेंट कर जाता है। यह प्रदर्शन का बाजार है, भौतिकता व वस्तुओं की चकाचौंध में डूबा हुआ।

By Edited By: Published: Sat, 15 Dec 2012 11:33 AM (IST)Updated: Sat, 15 Dec 2012 11:33 AM (IST)
संसारिक सुख क्षणभंगूर है

यह संसार एक बहुत बड़ा, आकर्षक बाजार है। यहां वही ग्राहक प्रिय, आत्मीय, स्वजन, सुरुचिकर व आत्मीय लगता है जो इस बाजार से आकर्षक वस्तुएं क्रय कर बदले में आकर्षक मुद्राएं भेंट कर जाता है। यह प्रदर्शन का बाजार है, भौतिकता व वस्तुओं की चकाचौंध में डूबा हुआ। यहां दर्शन, प्रेम, भक्ति, आराधना, सौहार्द्र, आस्था, विश्वास, मूल्य व आदर्शो की करेंसी (मुद्रा) अनुपयोगी व सारहीन है। यहां मुद्रा के आराधकों का सम्मान है। जो कुछ आकर्षक व मूल्यवान खरीद नहीं सकते उनके व्यापार के संवर्धन के सेतु व हेतु हो नहीं सकते, वे वहां निंदनीय हैं, त्याज्य हैं, निरर्थक व अस्तित्वहीन हैं। संसार माल का उपासक है। माल अमर्यादा, अनीति, अनाचार, अन्याय, असत्य, अप्रियता व अरुचिकर उपकरणों के माध्यमों से प्राप्त होता है। संसार में बड़ा वह है जिसके पास प्रदर्शनीय भौतिक पूंजी व संपदा अधिक है। संपत्ति, वैभव व भौतिक समृद्धि की प्रचुरता है। संसार वहिर्मुखी दृष्ट संपदा को स्थायी मान संग्रह में आनंद बटोरना चाहता है। वस्तुगत व भौतिक आनंद परिसीमित व नश्वर है। शाश्वत, कालातीत व चिरंतन आनंद का भवन भौतिकता विहीन शब्द ब्रंा की धुनि पर अवस्थित है। आनंद अभिव्यक्तिजन्य नहीं, अनुभूतिजन्य है, वहिर्मुखी नहीं अंतर्मुखी है। वस्तुओं की कामना की आग में जलते हुए द्वेष, पीड़ा, दंभ, वासना, चाह, महत्वाकांक्षा, अहंकार, मद, लोभ, मोह, संग्रह, वैर, घृणा व कुचिंतन की सीढि़यां चढ़ जीव विध्वंस व पश्चाताप के दुर्ग में जुटाए हुए को किसी दूसरे-तीसरे व चौथे के चंगुल में पड़ा देख असमर्थ व असहाय हो छटपटाने को बाध्य होता है। इसके विपरीत स्नेह, दया, भक्ति, आराधना, श्रद्धा, मूल्य व आस्था की चाक पर चढ़ा जीव आनंद की विशुद्धता, हृदय की निर्मलता के ज्ञान सरोवर का आचमन कर ईश का संसर्ग पा शाश्वत आनंद लोक का वासी हो जाता है। आस्था व विश्वास का वह भागवत निवेश सार्थक हो और अंतत: मनुष्य होने का परमानंद प्राप्त हो। आओ उस शब्द ब्रहृम के सार्थक निवेश की पहल आज और अभी कर लें।

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