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यह केवल काशी में संभव..

शंकर सुवन केसरी नंदन दरबार के कोने-कोने में पसरा श्रद्धा का अपूर्व संसार। मंच पर संगीत मार्तड पं. जसराज और दीर्घा में बैठे हर श्रोता के हृदय पर उनके सुरों का राज।

By Edited By: Published: Fri, 13 Apr 2012 11:46 AM (IST)Updated: Fri, 13 Apr 2012 11:46 AM (IST)
यह केवल काशी में संभव..

वाराणसी। शंकर सुवन केसरी नंदन दरबार के कोने-कोने में पसरा श्रद्धा का अपूर्व संसार। मंच पर संगीत मार्तड पं. जसराज और दीर्घा में बैठे हर श्रोता के हृदय पर उनके सुरों का राज। सुर अभी द्रुत लय पकड़ने ही वाले हैं कि हनुमत दरबार घंटा-घडि़याल की टनकारों से गूंज उठा। यह समझते ही कि अरुणोदय की आरती के लिए मंदिर के कपाट खुल चुके हैं, पंडित जी ने नितांत निर्विकार किंतु श्रद्धा भाव से अपना स्वर मंडल साज अपनी दांयी ओर रख कर उस पर रेशमी आवरण डाल दिया। सच कहें तो इस आवरण के नीचे सिर्फ साज ही नहीं संगीत जगत में शलाका पुरुष एक कलाकार का मैं भी ढक जाता है। सच यह भी है कि यश और कीर्ति की ऊंचाइयों को छू रहे किसी कलाकार का साज मध्य कार्यक्रम के बीच में ही रखवा देने का बूता तो बस काशी में और वह भी संकट मोचन दरबार की ठसक में ही है जहां आने के बाद बड़े से बड़ा कलाकार भी अकिंचन याचक बन कर रह जाता है। लगभग पंद्रह मिनट की आरती के बाद फिर एक बार मंच पर सजग कलाकार व राग रागिनियों का दौर। दरअसल संकट मोचन संगीत समारोह के मंच का यह प्रभामंडल स्थान विशेष की महत्ता का परिचायक है। महत्ता का यह आकर्षण ही देश के ख्यातिलब्ध कलाकारों को दशकों से अपनी ओर खींचता रहा है। 89 साल पुराने इस संगीत समारोह का मंच मिलना बड़े से बड़े कलाकार के लिए सम्मान की बात है। समारोह के एक संयोजक पं. जसराज स्वयं 1972 से यहां प्रति वर्ष प्रस्तुति देने आते हैं। उस दौरान वह मंदिर परिसर में बने कमरे में ही रहते हैं। बेलौस कहते भी हैं-1972 से यहां आ रहा हूं। एक बार अपनी जिद के चलते नहीं आ सका, उसका जीवन भर मलाल रहेगा।

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जिए सुत तेरो केसरी रानी.

संकट मोचन संगीत समारोह की दूसरी निशा से लगी गुरुवार की भोर संगीत मार्तड पं. जसराज ने सुरों की डोर से बांध कर भक्त और भगवान को एक डोर में बांधा। भजनों में रस घोल कर भक्ति सुधा की अविरल धारा बहायी। तड़के चार बजे पं. जसराज के आते ही मंच का आकार मानो अनंत आकाश सा विस्तार पा गया। गंभीर मुद्रा लेकिन होठों पर तैरती मुस्कान। दोनों हाथ उठाए, इंतजार में नजरें गड़ाए श्रोताओं का अभिवादन किया और परिसर हर हर महादेव के उद्घोष से गूंज उठा। उन्होंने गणेश राग वैरागी भैरव से गायन का श्रीगणेश किया। रौ में आता गायन मानो अंधेरे को छांट कर उजास को चटख बनाने में तल्लीन था। विलम्बित एक ताल में काशी विश्वनाथ का बखान तो तीन ताल में संकट मोचन हनुमान का गान किया। सूर्य की किरणें फूटने तक सुर की लहरियां बिखरती रहीं। तबले पर पं. रामकुमार मिश्र व हारमोनियम पर पारोमिता मुखर्जी ने संगत की। इससे पहले चेन्नई से पधारे डॉ. कदरी गोपालनाथ ने सैक्सोफोन पर त्यागराज की रचनाओं से विभोर किया। उन्होंने ठुमक चलत रामचंद्र. भजन से निहाल किया। मृदंगम पर वी प्रवीण, तबला पर नाकोड तथा वायलिन पर ए कन्या कुमारी व बैंगलूर राजशेखर ने संगत की।

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