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सर्वगुणनिधान श्रीहनुमान

श्रीहनुमानजी के गुणों और उनके आदर्श व्यक्तित्व से प्रेरणा लेकर हम अपने लक्ष्य की ओर बढ़ेंगे, तो निश्चित सफलता मिलेगी।

By Edited By: Published: Thu, 05 Apr 2012 02:45 PM (IST)Updated: Thu, 05 Apr 2012 02:45 PM (IST)
सर्वगुणनिधान श्रीहनुमान

हनुमानजी भगवान राम के दूत थे, लेकिन सेवा समेत सभी गुण होने के कारण वे स्वयं देवता के रूप में जन-जन के आराध्य बन गए। ऐसा इसलिए, क्योंकि हमने विविध क्षेत्रों में आदर्श के जो मापदंड बना रखे हैं, उन पर हनुमानजी खरे उतरते हैं।

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श्रीराम-लीला के महाकाव्य रामायण में श्रीहनुमानजी किष्किंधाकाण्ड में प्रकट होते हैं और उसके बाद की संपूर्ण रामकथा में वे प्रमुख पात्र बनकर सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सीता-हरण हो जाने के पश्चात् जब श्रीरामचंद्रजी लक्ष्मणजी के साथ उन्हें खोज रहे थे, तभी उनका श्रीहनुमानजी से मिलन हुआ। हनुमानजी नीति-निपुण थे और मान्यता है कि अनेक रूप धारण करने में सक्षम थे। अत: वे अपने प्राकृत वानर-रूप के बजाय विप्र-रूप में श्रीराम-लक्ष्मण के समक्ष उपस्थित हुए। उन्होंने जिस विनम्रता और वाकपटुता के साथ संवाद किया, उससे श्रीराम उनके असाधारण ज्ञान और विलक्षण बुद्धिमत्ता को पहचान गए। श्रीहनुमानजी की तत्वभेदी दृष्टि ने नर-वेषधारी नारायण [भगवान श्रीराम] को पहचान लिया और वे उसी क्षण से पूर्ण निष्ठा के साथ सदा के लिए श्रीराम को समर्पित हो गए।

भगवती सीता की खोज तथा वानरराज सुग्रीव को खोया हुआ राज्य और अपहृत पत्नी वापस दिलाने के लिए हनुमानजी ने श्रीरामचंद्रजी और सुग्रीव की मैत्री कराई। इससे उनके असाधारण चातुर्य का परिचय मिलता है। भगवती सीता को खोजने, समुद्र पार करके लंका जाने के लिए हनुमानजी का चयन होना यह बतलाता है कि पूरी वानरसेना में उनके जैसा कोई और नहीं था। पर अहंकार रहित होने के कारण ऋक्षराज जाम्बवान जी को उन्हें उनकी ही शक्ति और साम‌र्थ्य का स्मरण करवाना पड़ा :

कहइ रीछपति सुनु हनुमाना।

का चुप साधि रहेउ बलवाना॥

पवनतनय बल पवन समाना।

बुद्धि विवेक विग्यान निधाना॥

कवन सो काज कठिन जग माहीं।

जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥

श्रीरामचरितमानस के किष्किंधाकाण्ड की इन पंक्तियों में श्रीहनुमानजी को महाबलवान, बुद्धिमान, विवेक और विज्ञान की खान कहा गया है। वाल्मीकि रामायण में वानरराज सुग्रीव हनुमानजी से कहते हैं- वानरश्रेष्ठ! मैं देखता हूं कि भूमि, अंतरिक्ष, आकाश, स्वर्ग अथवा जल में भी तुम्हारी गति का अवरोध नहीं है। तुम असुर, गंधर्व, नाग, नर, देवता, सागर और पर्वतों सहित समस्त लोकों को जानते हो। गति, वेग, तेज और स्फूर्ति- ये सभी सद्गुण तुममें वायुदेव के समान ही हैं। तुम्हारे समान तेजस्वी और कोई नहीं है। अतएव वीर! ऐसा प्रयत्न करो, जिससे सीताजी का पता चल जाए। तुममें बल, बुद्धि, पराक्रम तथा नीति बनाने की योग्यता पूर्णरूप से है।

जब हनुमानजी समुद्र पार करने लगे, तब उनकी शक्ति और बुद्धि की परीक्षा लेने नागमाता सुरसा सामने आई, जिसमें हनुमान जी खरे उतरे। इसी तरह वे सिंहिका और लंकिनी के माया-जाल को भेदकर लंका में सकुशल प्रवेश कर गए। विशाल समुद्र पार करते समय मैनाक पर्वत ने उनसे कहा- तनिक विश्राम कर लीजिए। किंतु दृढ़संकल्पवान हनुमानजी भला सीता जी की खोज से पहले आराम कैसे कर सकते थे? वे बोले- राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहां विश्राम। राक्षसों से भरी लंका में उन्होंने सदाचारी विभीषण को खोज निकाला। हनुमानजी ने न सिर्फ सीताजी को श्रीराम का संदेश देकर आश्वस्त किया, बल्कि वापस लौटने से पूर्व अशोक वाटिका को ध्वस्त करके सोने की लंका को जलाकर उन्होंने रामजी की वानर-सेना की ताकत का अहसास भी रावण को करा दिया।

लंका-दहन तथा सीताजी से संदेश एवं निशानी लेने के पश्चात हनुमानजी ने समुद्र पार कर जब रामचंद्रजी को सीताजी की खोज कर लेने का सुखद समाचार सुनाया, तब भगवान राम ने उनकी प्रशंसा की। लेकिन परम विनम्र निराभिमानी हनुमानजी ने अपनी इस सफलता का श्रेय अपने स्वामी श्रीराम को ही दिया। अहंकार-शून्यता का ऐसा उदाहरण कहीं और नहीं दिखता। लक्ष्मणजी को मूर्छित होने पर गोद में उठाकर लाना तथा संजीवनी बूटी के निमित्त द्रोणाचल पर्वत को उखाड़ लाना उनके असीम शौर्य को प्रतिबिंबत करता है। श्रीराम ने अयोध्या लौटने पर जब सेवकों और साथियों को पुरस्कृत किया, तब हनुमानजी ने उनसे सेवा का ही वरदान मांगा। हनुमान जी के प्रति आभार व्यक्त करते हुए श्रीराम ने यहां तक कह दिया- मैं तुम्हारा ऋणी हूं और उससे उऋण नहीं हो सकता।

आनंद रामायण में एक श्लोक में उल्लेख किया गया है कि श्रीहनुमानजी के स्मरण मात्र से बुद्धिमत्ता, बल, यश, धीरता, निर्भयता, आरोग्यता, सुदृढ़ता और वाक्पटुता प्राप्त होती है।

समस्त सद्गुणों की प्रतिमूर्ति हनुमानजी की उपासना का मूल उद्देश्य उनसे उनके सद्गुण ग्रहण करना ही है। सर्वगुणनिधान श्रीहनुमानजी की जयंती (चैत्री पूर्णिमा) के दिन यदि हम उनके आदर्श व्यक्तित्व से प्रेरणा लेकर उनके गुणों को जीवन में उतारकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ेंगे, तो निश्चित ही सफलता मिलेगी।

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