हजार रातों पर भारी पांच रातें
रमजान का तीसरा और आखिरी असरा जहन्नुम के अजाब से आजादी का है। यह रोजेदारों के लिए सबसे अहम है।
इलाहाबाद। रमजान का तीसरा और आखिरी असरा जहन्नुम के अजाब से आजादी का है। यह रोजेदारों के लिए सबसे अहम है। इसी तीसरे असरे में कुरान नाजिल हुई थी। रवायत के मुताबिक रमजान के इस अंतिम असरे में शब-ए-कद्र की पांच रातें इबादत के लिहाज से हजार रातों पर भारी हैं। लिहाजा इस तीसरे में असरे में रोजेदार पूरी शिद्दत से इबादत की तैयारी में हैं।
शब-ए-कद्र की पांच रातों में मुसलमान कोशिश करता है कि वह पूरी रात अल्लाह की इबादत करे। क्योंकि इन रातों में की गई हर दुआ कबूल होती है। रमजान के 21, 23, 25, 27 और 29 की रात इबादत की रात है, गुनाहों की माफी की रात है। इन पांच रातों में मस्जिदों में कुरान की तिलावत और नमाज का सिलसिला बढ़ जाता है। घरों में भी पूरी रात इबादत का दौर चलता है। लोग जिक्त्र-ए-इलाही में शब से सुबह कर देते हैं। शुक्त्रवार से शुरू हो रहे रमजान के तीसरे में मुस्लिम इलाकों में पूरी रात चहल-पहल दिखाई पड़ती है।
रमजान के आखिरी दस दिनों में मस्जिदों में एतकाफ की तैयारियां भी शुरू हो गई हैं। मौलाना अहमद मकीन कहते हैं कि ये रमजान के आखिरी दस दिन हैं। इन दिनों में कोशिश करनी चाहिए कि इबादत में जो कमी रह गई है, उसे दूर कर लिया जाए। हमारे नबी आखिर के इन दस दिनों में इबादत के लिए कमर कस लिया करते थे। वह अपने घरवालों को भी हुक्म देते थे कि तुम लोग इन दिनों अल्लाह की खूब इबादत करो। लिहाजा हम सभी को चाहिए कि अपने नबी की सुन्नत पर अमले करें और अपने घरवालों को, अपनी औलादों को भी ऐसा करने के लिए कहें।
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