पर्यावरण प्रेम का प्रतीक अनोखी डाली मेला
अनोखी डाली का मेला अपने आपमें अनोखा इतिहास संजोए है। परगने में सालों पहले काली माता के बड़े टिब्बे पर उगा पेड़ आकर्षण का केंद्र बना था। इस पेड़ की डाली इतनी अनोखी थी कि टहनी से बनी लाठियों के पास भूत प्रेत भी नहीं फटकते थे और जादू टोना भी असर नहीं छोड़ पाता था।
शिमला। अनोखी डाली का मेला अपने आपमें अनोखा इतिहास संजोए है। परगने में सालों पहले काली माता के बड़े टिब्बे पर उगा पेड़ आकर्षण का केंद्र बना था। इस पेड़ की डाली इतनी अनोखी थी कि टहनी से बनी लाठियों के पास भूत प्रेत भी नहीं फटकते थे और जादू टोना भी असर नहीं छोड़ पाता था। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह व उनकी पत्नी सांसद प्रतिभा सिंह ने भी इस परंपरा को सिर-माथे लगाया और अनोखी डाली को आम लोगों की तरह अपने पहलू में सजाया। पर्यावरण के संरक्षण के प्रतीक अनोखी डाली का मेला आज भी जुब्बड्हट्टी एयरपोर्ट के समीप खलग में हर्षोउल्लास से मनाया जाता है। परगने के बुजुर्ग अनोखी डाली के पेड़ की लाठियां लिए मेले में पहुंचते हैं। शनिवार को हुए मेले में भी बुजुर्गो ने काफी शोभा बढ़ाई। सैकड़ो लोगो ने मेले मे भाग लिया। इस अवसर पर दैनिक जागरण ने लोगो की नब्ज टटोली।
लोगों का कहना था कि अनोखे इतिहास को संजोए मेला अनोखी डाली का नामकरण एक ऐसे पेड़ पर हुआ जो दुर्लभ था। इस मेले के नामकरण के पीछे लोगों की पेड़ पे्रमी होने की भावना भी इसका नाम स्वत: ही प्रदर्शित कर देता है। मेले मे पहुंची 45 वर्षीय भवाणा निवासी गांव निवासी सत्या देवी और 52 वर्षीय दिलाराम कश्यप का कहना है कि वह बचपन से इस मेले को देख रहे हैं। उन्होंने देखा है कि किस तरह काली माता के मंदिर के पास अनोखा पेड़ था, जिसकी पत्तियां निराली थी। इसे देखने दूर परगने से लोग पहुंचने लगे थे। डाली देखने के लिए लोगों की भीड़ इकट्ठी हो जाया करती थी, जो आज मेले में तबदील हो गया है।
मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर