महाकुंभ: अरबों के मेले में मरहम-पट्टी का टोटा
अरबों का मेला, मेले में लाखों श्रद्धालु पर उनके इलाज के लिए मरहम-पट्टी की भी व्यवस्था नहीं, है न गजब तमाशा।
इलाहाबाद। अरबों का मेला, मेले में लाखों श्रद्धालु पर उनके इलाज के लिए मरहम-पट्टी की भी व्यवस्था नहीं, है न गजब तमाशा।
श्रद्धालुओं की सेहत को लेकर स्वास्थ्य विभाग कितना गंभीर है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मेला क्षेत्र के अस्पतालों में प्राथमिक चिकित्सा तक की व्यवस्था नहीं है। यह सब तब है जब कुछ दिनों बाद मेला क्षेत्र में लाखों लोगों का जमघट होने वाला है, परंतु यहां के अस्पतालों में अगर कोई दुर्घटना का शिकार होता है तो उसके इलाज के नाम पर सिर्फ बेड मौजूद है। यहां सेवलान, पट्टी, रूई के साथ पैरासीटामॉल जैसी दवाएं अभी पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंची हैं। कुंभ के लिए स्वास्थ्य विभाग को 49 करोड़ मिले। इसमें 13 अस्पताल बनाने के साथ चार हजार मूत्रालय, 34 सौ जनशौचालय, चार हजार मूत्रालय आदि का काम कराया गया।
वहीं, विभाग के कार्यो पर शुरू से उंगली उठती रही। दवाओं की खरीद को लेकर अपर निदेशक स्वास्थ्य व अन्य अधिकारियों के बीच लगातार विवाद होता रहा है। इसकी जानकारी होने पर बुधवार को लोकनिर्माण मंत्री शिवपाल यादव ने अपर निदेशक स्वास्थ्य डॉ. जेपी पांडेय को बिना टेंडर के दवा खरीदने पर फटकार लगाते हुए मंडलायुक्त से मामले की जांच कराने को कहा। शाम को डॉ. जेपी पांडेय को निलंबित कर लखनऊ कार्यालय से संबद्ध करते हुए डॉ. आरके श्रीवास्तव को अपर निदेशक स्वास्थ्य का दायित्व दिया गया है, वह शुक्त्रवार को अपना कार्यभार ग्रहण करेंगे।
लेकिन इस बदलाव के बाद भी समस्या जस की तस बनी है। दवा खरीद में घपले का असर यह है कि अस्पतालों में जलने-कटने, बुखार, दमा जैसे रोगों के प्राथमिक उपचार की व्यवस्था नहीं हो पाई है। पैरासीटामाल की गोलियां, रूई व पट्टी पर्याप्त मात्रा में नहीं है। वहीं विभागीय अधिकारी खुलकर कुछ बोलने को तैयार नहीं हैं, उनका कहना है कि लोगों की संख्या के अनुरूप सुविधा हमारे पास मौजूद है।
कुंभ में पुण्य कमाएगी सरकार-
अखिलेश सरकार 2014 के आम चुनाव से पहले कुंभ मेले को अपनी मार्केटिंग के बेहतरीन अवसर के रूप में देख रही है। मेले में सरकार की उपलब्धियों, नीतियों व भावी जनकल्याणकारी योजनाओं का भरपूर प्रचार-प्रसार किया जाएगा। यही वजह है कि अखिलेश सरकार इस दौरान प्रचार-प्रसार पर करोड़ों रुपये खर्च करने जा रही है। इसके लिए सूचना विभाग को सवा छह करोड़ रुपये दिए गए हैं। इस भारी-भरकम राशि से कुंभ में उमड़ने वाले जनसमुद्र को रिझाने की कोशिश होगी।
केंद्र की सत्ता हासिल करने की सभी राजनीतिक दलों की कोशिशें जिस तरह अभी से ही परवान चढ़ने लगी हैं, उससे कुंभ मेले पर सियासत का रंग चढ़ना तय है। फिलहाल मेला अपनी शुरुआत से पहले ही संतों के संग्राम से तप रहा है। संतों की इस लड़ाई में कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह, भाजपा का प्रदेश नेतृत्व और प्रदेश सरकार के कद्दावर मंत्री शिवपाल सिंह भी कूद पड़े हैं। नतीजा, संगमनगरी में धर्म व अध्यात्म के साथ राजनीति का संगम भी हो गया है। यही वजह है कि 2014 में होने वाले सियासी महाकुंभ के मद्देनजर नेताओं का तीर्थराज में अभी से सक्रिय होना स्वाभाविक है। खुद को गैर सियासी कहने वाली विश्व हिंदू परिषद मेले के दौरान सम्मेलन कर भविष्य की रणनीति बनाने की घोषणा पहले ही कर चुकी है। मेले में साधु-संत के कैंप ही यहां आने वाले श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र होंगे। अधिकांश संतों को भाजपा या फिर कांग्रेस समर्थक माना जाता है।
यह स्थिति सपा के लिए चुनौतीपूर्ण है। अखिलेश सरकार न सिर्फ मेले में आने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं को रिझाएगी, बल्कि विदेशी मीडिया को भी आकर्षित करेगी, ताकि विश्व पटल पर उसकी बेहतर छवि स्थापित हो सके। खासतौर पर उन परिस्थितियों में जब सपा अपने मुखिया मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री बनाने का संकल्प लेकर आगे बढ़ रही है। ऐसे में उसके लिए 2014 के चुनाव से पहले देश भर के सामने खुद की छवि बेहतर करने का मौका है। आम चुनाव में सपा अधिक से अधिक सीटें हासिल करने के लिए उत्तर प्रदेश के अलावा अन्य राज्यों में भी अपने उम्मीदवार उतारेगी। कुंभ में पूरे देश से लोग आएंगे, उनके बीच अखिलेश सरकार की उपलब्धियों, नीतियों व भावी जन कल्याणकारी योजनाओं का प्रचार-प्रसार करने का इससे बेहतर मौका नहीं मिलेगा। सपा व सरकार के रणनीतिकार इसे अच्छी तरह जान-समझ रहे हैं। यही वजह है कि प्रदेश सरकार ने सूचना विभाग को छह करोड़ 25 लाख रुपये का भारी-भरकम बजट दिया है। आने वाले दिनों में यह राशि और बढ़ाई जा सकती है। सूचना विभाग मेला क्षेत्र में कैंप करके सरकार का बखान करेगा, जिसका पुण्य प्रताप 2014 में मिलने की बेकरारी रहेगी।
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