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एक और टूट की ओर अखाड़ा परिषद

धार्मिक समागम का महाकुंभ शुरू होने में अभी काफी समय है, लेकिन इससे पहले अखाड़ों का विवाद गहराता जा रहा है। कुंभ क्षेत्र में अधिक जमीन व सुविधाओं की तकरार अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि अखाड़ा परिषद का फिर से चुनाव कराने की जमीन तैयार की जाने लगी है।

By Edited By: Published: Mon, 20 Aug 2012 11:59 AM (IST)Updated: Mon, 20 Aug 2012 11:59 AM (IST)

इलाहाबाद [शरद द्विवेदी]। धार्मिक समागम का महाकुंभ शुरू होने में अभी काफी समय है, लेकिन इससे पहले अखाड़ों का विवाद गहराता जा रहा है। कुंभ क्षेत्र में अधिक जमीन व सुविधाओं की तकरार अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि अखाड़ा परिषद का फिर से चुनाव कराने की जमीन तैयार की जाने लगी है। रणनीतिकार इसे दो गुटों में बंटे अखाड़ा को परंपरागत रूप से एक करने की दुहाई दे रहे हैं, लेकिन दोनों गुटों के अधिकतर पदाधिकारी इससे असहमत हैं। इस बीच अखाड़े में तीसरा गुट सामने आ रहा है, जो दीपावली से पहले चुनाव कराने पर अड़ा है।

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1954 के कुंभ में मची भगदड़ के बाद सभी अखाड़ों ने मिलकर अखाड़ा परिषद का गठन किया जिसमें परिषद का चुनाव हर छह वर्ष में कराया जाना सुनिश्चित हुआ था। नियम के अनुरूप सब ठीक चल रहा था। विवाद की शुरुआत वर्ष 2004 में निर्वाणी अणि के महंत ज्ञानदास के अध्यक्ष बनने के बाद हुई। कुछ अखाड़ों के महंतों ने उन्हें अयोग्य ठहराते हुए चुनाव कराने की मांग शुरू कर दी, लेकिन वह अपने पद पर बने रहे। इनके बाद प्रयाग स्थित मठ बाघंबरी गद्दी में 2010 में परिषद का चुनाव हुआ। चुनाव में 13 में सात अखाड़ों निरंजनी, आनंद, महानिर्वाणी, अटल, बड़ा उदासीन, नया उदासीन, निर्मल अखाड़ा के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। जबकि जूना, आह्वान, अग्नि, दिगंबर अणि, निर्वाणी अणि, निर्मोही अणि के पदाधिकारियों ने इसका बहिष्कार किया था। इसमें निर्मल अखाड़ा के महंत बलवंत सिंह अध्यक्ष व आनंद अखाड़ा के शंकरानंद सरस्वती महामंत्री चुने गए। चुनाव के बाद भी महंत बलवंत सिंह व ज्ञानदास स्वयं को अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष बता रहे हैं। अब निरंजनी, नया उदासीन, बड़ा उदासीन सहित कुछ अखाड़े दीपावली तक परिषद का पुन: चुनाव कराने की योजना बना रहे हैं। इस योजना से कुछ अखाड़े सहमत तो कई इसे निरर्थक प्रयास बता रहे हैं। इससे अखाड़ा एक और टूट की ओर बढ़ रहा है।

निरंजनी अखाड़ा के महासचिव महंत नरेंद्र गिरि का कहना है कि अखाड़ा परिषद दो गुटों में बंटा है, जो किसी के लिए ठीक नहीं है। कुंभ से पहले सामूहिक चुनाव कराने का प्रयास चल रहा है, जिसमें 13 अखाड़ों के प्रतिनिधि शामिल हों, बिना इसके परिषद का महत्व नहीं रह जाएगा। प्रवक्ता अखाड़ा परिषद महंत दुर्गादास ने कहा कि कुंभ से पहले चुनाव होना अखाड़ा की परंपरा रही है, जिसमें 13 अखाड़ों के प्रतिनिधियों को शामिल होना चाहिए। हम उसी परंपरा के पालन का प्रयास कर रहे हैं।

अखाड़ा परिषद का महत्व-

महाकुंभ में अखाड़ों की अहम भूमिका होती है। इनका शाही स्नान सबसे खास होता है। मेले के दौरान परिषद के निर्देश पर ही मेला प्रशासन अखाड़ों के शाही जुलूस, स्नान करने का समय, स्थान सहित अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराता है।

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