मन और वाणी में संयम से जीवन सुखमय
सींथल पीठाचार्य क्षमाराम महाराज ने कहा कि मन व वाणी में संयम रखने वाला जीवन में सदैव सफल रहता है। इसके विपरीत आचरण दुखदायी होता है तो नर्क का मार्ग भी प्रशस्त होता है।
वाराणसी। सींथल पीठाचार्य क्षमाराम महाराज ने कहा कि मन व वाणी में संयम रखने वाला जीवन में सदैव सफल रहता है। इसके विपरीत आचरण दुखदायी होता है तो नर्क का मार्ग भी प्रशस्त होता है। राक्षसों का अतीत कहीं न कहीं से संत- महात्माओं से जुड़ा था। कहीं न कहीं वाणी पर संयम न रखने से ही रावण-कुंभकर्ण आदि राक्षस की श्रेणी में आ गए।
उन्होंने कहा कि रावण व कुंभकर्ण भगवान विष्णु के प्रिय भक्त प्रताप भानु के ही स्वरूप थे। सनत् कुमारों के साथ दुर्वयवहार व जुबान पर संयम न रहने से ही दोनों राक्षस योनि को प्राप्त हुए। तुलसीदास ने भी कहा है कि तुलसी मीठे वचन से सुख उपजत चहुंओर, वशीकरण का यही मंत्र है। ऐसे में तज दो वचन कठोर। इसके लिए रामचरित मानस का भी सहारा लिया जा सकता है। उधर, प्रवचन श्रवण के साथ श्रद्धालुओं ने उसमें स्वर भी मिलाए। भजन गाए और संगीतमय चौपाइयों से परिसर को गूंजा दिया।
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