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जगाएं नई उर्जा

नव वर्ष पर नूतनता का अहसास तभी होगा, जब हम अंतस की ऊर्जा को जगाकर क्रियाशील और अपने परिवेश के प्रति सजग बनेंगे। ऐसी ऊर्जा आनंद भी देगी और पथ को प्रकाशित भी करेगी..

By Edited By: Published: Tue, 01 Jan 2013 12:07 PM (IST)Updated: Tue, 01 Jan 2013 12:07 PM (IST)

क्या वर्ष दस्तक दे रहा है। यह समय हमें आत्ममूल्यांकन करने का अवसर प्रदान करता है, जिसके द्वारा हम आने वाले वर्ष के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करते हैं।?यही हमारी नई ऊर्जा है। इसे जगाने के क्या हैं उपाय, जानें प्रसिद्ध?लोगों से:

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मन की शक्ति अपार

आर्ट ऑफ लिविंग के प्रणेता श्रीश्री रविशंकर मानते हैं कि अतीत हमें अधिक समझदार बनाता है और भविष्य इस समझदारी का उपयोग करके कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। परंतु जो कुछ हमें करना होता है, वह वर्तमान में रहकर ही करते हैं। इसलिए वर्तमान को नजरअंदाज न कर इसमें मन की शक्ति को मजबूत बनाना आवश्यक है। वह कहते हैं, प्रेरणा, परिवर्तन और अंतज्र्ञान के लिए चिंतन के कुछ क्षण दिनचर्या में लाना आवश्यक है। योजना बनाने और काम करने के लिए यह आवश्यक है कि हम अपने परिवेश को तनावमुक्त रखने के लिए छोटी-छोटी चीजें करते रहें। रोज की आपाधापी में व्यक्ति अपने आत्मबल और मन की शक्ति को भूलने लगता है, इसलिए प्रकृति के साथ समय व्यतीत करने, स्वाध्याय, ध्यान और परोपकार के कार्य करने से जीवन में उत्साह का स्तर बना रहता है।

संबंधों का निर्माण

जैन मुनि पुलक सागर जी कहते हैं कि पुराने द्वेष को भूल जाने और प्रेमपूर्ण संबंधों के नए निर्माण से हम जीवन में एक नई ऊर्जा भर सकते हैं। वे बताते हैं, पिछले वर्ष जयपुर प्रवास के दौरान मेरा एक शिष्य मेरे पास आया। पता चला कि वह 10 साल से अपने भाई से नहीं बोलता था। दोनो में प्रबल वैर-विरोध था। मैंने कारण पूछा, तो बोला 10 साल पहले उसने मेरा अपमान किया था। उसकी बात दिल में चुभ गई। मैने कहा-मैं नए वर्ष पर तिजारा तीर्थ पर जा रहा हूं, तुम वहां आना। वह तिजारा आया। उसने मुझसे कहा कि नए साल पर मुझे ऐसा आशीर्वाद दीजिए, जिसे मैं सहेज कर रख सकूं। मैंने कहा - तुम मुझे 10 साल पुराना कैलेंडर दे दो। वह बोला - कैसी बात करते हैं आप, मेरे पास तो एक साल पुराना कैलेंडर भी नहीं है। मैंने कहा- जब तुम एक साल पुराना कैलेंडर घर में नहीं रख सकते तो दस साल पुरानी बातें अपने मन में क्यों रखते हो? अपने दिलो-दिमाग से नफरत का कचरा निकाल फेंको। नए साल पर नए मन के साथ मेरे पास आओ। उसके बाद दोनों भाइयों में प्रेम स्थापित हो गया। पुलक सागर जी कहते हैं, नया वर्ष प्रेम और सौहार्द की सौगात लेकर आए, तभी सार्थक होगा। पुराना वर्ष हमें छोड़ रहा है, उसके साथ-साथ हमें भी पुरानी

बुराइयों को छोड़कर नए जीवन की शुरुआत करनी चाहिए।

जनसेवा से जागे ज्योति

वरिष्ठ कवि व चिंतक कैलाश वाजपेयी जन-सेवा को ही वह पद्धति बताते हैं, जिससे व्यक्ति हर समय ऊर्जस्वित रह सकता है। वह कहते हैं, हमारे भीतर का संतोष तब उपजता है, जब हम दूसरों को सुख देते हैं। लोगों की सेवा करते हैं। परिवार वालों के और समाज के लोगों का हितचिंतन करते हैं। कैलाश वाजपेयी बताते हैं, हमने जन-उपवन पार्क में चिंतनस्थल बनाया है, जहां अवकाशप्राप्त लोग सामाजिक कार्यक्रम चलाते हैं। मेरे मित्र ने गांव के एक गरीब बच्चे को पढ़ाने का जिम्मा लिया था। बीए पास करके अब वह अपने गांव का सरपंच हो गया है। हम लोगों के सहयोग से उसने गो-सेवा का व्रत लिया है, ताकि पांच-छह घरों में ही सही, लोगों को अच्छा चारा खाई गाय का शुद्ध दूध मिल सके। ये जन-सेवा के कार्य मन को बहुत आत्मतोष देते हैं।

कैलाश जी कहते हैं कि नववर्ष पर यह संकल्प लेना आवश्यक है कि लोगों को उनके कर्तव्यों का स्मरण कराएं। जैसे- व्यस्तता के बावजूद घर में समय देना अनिवार्य है। आप हर समय कंप्यूटर इंटरनेट से ही चिपक कर न बैठें, संबंधों के प्रति जागरूकता होना अनिवार्य है। बच्चों को अच्छे संस्कार दें, उन्हें अपनी संस्कृति और पवरें की महत्ता के बारे में कथा-कहानियों के जरिये समझाएं।

सकारात्मक सोच जरूरी

कथाकार ममता कालिया कहती हैं, सभी को प्रतिपल नई ऊर्जा जगाने की जरूरत होती है। नए विचार सकारात्मक सोच से आते हैं। सकारात्मकता जीवन के घने से घने अंधेरे से उजाले की ओर खींच लाती है। वह कहती हैं साहित्य में हमें अपने भीतर नई सकारात्मक ऊर्जा जगाने के तमाम सूत्र मिलते हैं। हेमिंग्वे का उपन्यास द ओल्ड मैन आन द सी में कितना जीवन-संघर्ष है। एक आदमी मछली से हार नहीं मानता, जिसकी ऊर्जा का सहारा एक 12 वर्ष का बच्चा बनता है। रवींद्र कालिया का उपन्यास 17 रानाडे रोड में नायक विपरीत परिस्थितियों से पुरुषार्थी बनकर उभरता है। इस तरह सकारात्मक ऊर्जा हमारे जीवन में एक नई रोशनी देती है।

सजगता है मूलमंत्र

कभी ओशो से संन्यास लेकर स्वामी विनोद भारती बन गए थे फिल्म अभिनेता विनोद खन्ना। वे मानते हैं कि सजगता या होश ऐसा मूलमंत्र है, जो हर चीज की गुणवत्ता को बदल देता है। विनोद खन्ना बताते हैं, वैसे तो बचपन से ही अध्यात्म में मेरी रुचि थी, लेकिन मेरे जीवन में ऐसा समय आया जब मैंने अपने परिवार में कई लोगों को खो दिया। यह मृत्यु से मेरा साक्षात्कार था। मुझे लगा कि मेरा भी अंत हो जाएगा, फिर यह यश और धन किस काम का? कैमरे के सामने होकर भी मेरा मन काम में नहीं होता था। ऐसे समय में मैं ओशो से मिला। महेश भ˜ मुझे पुणे ओशो आश्रम ले गए थे। विनोद बताते हैं, 1975 में ओशो ने मुझे बगीचे का काम दिया। मैं खूब काम और ध्यान करता। वहां से लौटा तो होश और चेतना लेकर। उसके बाद मेरी सजगता खोती नहीं। फिल्मों में ही नहीं, जीवन में भी मेरे भीतर हर काम के प्रति सजगता होती है।

प्रस्तुति : विवेक भटनागर

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