ब्रिटिश हुकूमत का था फरमान, न ठहराएं अजनबी
कुंभ मेले को व्यवस्थित ढंग से आयोजित करने के अंग्रेजी हुकूमत के फरमान आज इतिहास के पीले पन्ने बन चुके हैं। इन्हीं में एक मेले में किसी अजनबी को न रुकने देने का आदेश सबसे अलग था। यह अजनबी कोई और नहीं, बल्कि बीमार और आपराधिक प्रवृत्ति के लोग थे।
कुंभ मेले को व्यवस्थित ढंग से आयोजित करने के अंग्रेजी हुकूमत के फरमान आज इतिहास के पीले पन्ने बन चुके हैं। इन्हीं में एक मेले में किसी अजनबी को न रुकने देने का आदेश सबसे अलग था। यह अजनबी कोई और नहीं, बल्कि बीमार और आपराधिक प्रवृत्ति के लोग थे।
1870 में जारी एक फरमान में कल्पवास करने वालों से हलफनामा लिया गया था, जिसमें उन्हें अपने शिविर में किसी अजनबी को न ठहराने का निर्देश था। तीर्थयात्रियों के रहने की व्यवस्था करने वाले संगठन प्रयागवाल सभा को भी एक निर्देश दिया गया था। इस निर्देश में संगठन को अपने तंबुओं में किसी ऐसे यात्री को- जो इससे पहले संगठन के तंबू में न रहता रहा हो- को आश्रय न देने को कहा गया था।
दरअसल ब्रिटिश हुकूमत इस धार्मिक आयोजन की सफलता को अपनी विश्वसनीयता से जोड़कर देखती थी। इसके चलते मेले में सुरक्षा के नजरिए से तमाम इंतजाम किए जाते थे। तब कुंभ में तमाम आपराधिक प्रवृत्ति के लोग यात्रियों को लूटने की नीयत से घुस आते थे। इस स्थिति से बचने के लिए मेलाधिकारी को विशेष एहतियात बरतने के निर्देश थे। मेले में लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते थे। इनमें से तमाम गंभीर बीमारी से पीडि़त लोग भी होते थे। इनसे मेले में महामारी फैलने की आशंका रहती थी। इस आशंका से पार पाने के लिए कल्पवासियों को किसी बीमार को अपने टेंट में न ठहराने का आदेश दिया गया था।
[संदीप दुबे]
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