जीवंत होगी गौरवशाली परंपरा
आने वाले वर्षो में अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहा, तो ऐतिहासिक आद्यशंकराचार्य मठ अपने अतीत की गौरवशाली परंपरा को पुन: जीवंत करेगा। यह आर्ट आफ लिविंग के संस्थापक श्रीश्री रविशंकर के सहयोग से होगा।
बोधगया, [विनय कुमार मिश्र]। आने वाले वर्षो में अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहा, तो ऐतिहासिक आद्यशंकराचार्य मठ अपने अतीत की गौरवशाली परंपरा को पुन: जीवंत करेगा। यह आर्ट आफ लिविंग के संस्थापक श्रीश्री रविशंकर के सहयोग से होगा। बोधगया स्थित इस मठ के लिए 21 जनवरी महत्वपूर्ण थी। इस दिन श्रीश्री का मठ में कदम पड़ा और उन्होंने अपेक्षा से हटकर इसकी रक्षा व विकास का भरोसा महंत सुदर्शन गिरि को दिया। यह पहला मौका था जब किसी ने मठ को कुछ देने का भरोसा दिलाया। अब तक के इतिहास में मठ ने सब को दिया, किसी से कुछ नहीं लिया। वैसे, किसी ने कुछ देने का प्रयास भी नहीं किया। लंबे अर्से बाद श्रीश्री पहले शख्स है, जिन्होंने मठ की रक्षा और विकास का वादा करते हुए यहां के संन्यासियों को वेद की शिक्षा देकर मर्मज्ञ बनाने का भी प्रस्ताव दिया। श्रीश्री ने महंत सुदर्शन गिरि से कहा कि आप चाहें तो कुछ शिष्य हमें दें। हम उन्हें वेद मर्मज्ञ बनाकर वापस आपके मठ को देंगे।
गोस्वामी उद्धव गिरि ने स्थापित किया था मठ आद्यशंकराचार्य के दशनामी संप्रदाय के गिरिनामा संन्यायिसों के इस मठ की स्थापना 1590 में गोस्वामी उद्धव गिरि ने की थी। फिर, 1892 में मठ के भव्य भवन का निर्माण महंत कृष्ण दयाल गिरि ने कराया। आगे मठ ने कई उतार-चढ़ाव के दिन देखे। शिक्षा व समाजसेवा के लिए कई शैक्षिक संस्थान की स्थापना और शंकर मत के प्रचार-प्रसार हेतु जमीन और राशि दान दी गई, जिसमें मगध विश्वविद्यालय का नाम सर्वोपरि है। 1857 के सैनिक विद्रोह के समय स्त्रियों और बूढ़ों को इस मठ द्वारा संरक्षण दिया गया और वर्ष 1966 के अकाल में तो सैकड़ों क्विंटल अन्न नित्य दिन लोगों में वितरित किया जाता था। आज भी मठ परिसर में अन्नपूर्णा देवी द्वारा महंत महादेव नाथ गिरि को प्रसाद स्वरूप दिया गया कटोरा मठ के भीतरी हिस्से मे दर्शनीय है। आंदोलन की आग में भी फंसा एक समय ऐसा भी आया, जब इस मठ के विरोध में आवाज उठी। अप्रैल 1975 में छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के बैनर तले लोगों ने भूमि मुक्ति आंदोलन का बिगुल फूंका और जो जमीन को जोते बोए, वही जमीन का मालिक होए। कमाने वाला खाएगा, लूटने वाला जाएगा, नया जमाना आएगा का नारा बुलंद किया था। 18 अप्रैल 1975 को सर्वोदयी नेता और वाहिनी के नायक जयप्रकाश नारायण, एस. जगन्नाथन आदि ने मठ के गेट पर आयोजित धरना को संबोधित किया था। यह आंदोलन वर्ष 1987 में समाप्त तो हुआ, लेकिन मठ की 18 हजार एकड़ भूमि में लगभग 12 हजार एकड़ का भूमिहीनों में बंटवारा कराने के पश्चात। इस बीच 8 अगस्त 1979 को मस्तीपुर में आंदोलनकारियों पर गोलियां चलीं, जिसमें पांचू मांझी, रामदेव मांझी वाहिनी के और रामाधार सिंह मठ के गुमाश्ता शहीद हुए, जबकि जानकी मांझी घायल। वाहिनी के सदस्य रहे प्रदीप कुमार दीप उर्फ ललन सिंह कहते हैं कि वह आंदोलन हिंसक नहीं था। वाहिनी के लोग मध्यम मार्ग पर चल रहे थे। वैसे, सदस्यों को हालात देख आशंका थी कि संघर्ष हिंसक हो सकता है, लेकिन वे भरपूर प्रयास कर रहे थे कि आंदोलन हिंसक न हो। बावजूद इसके गोलीबारी की नौबत आ पहुंची और दोनों पक्षों से कुछ लोग मारे गए।
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