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गौरवशाली है निष्कलंक माता का महागिरजाघर

प्रभु यीशु से अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए प्रार्थना करने का प्रमुख स्थान है निष्कलंक माता का महागरिजाघर, जहां मांगी जाने वाली हर मुराद पूरी होती है। यह रोमन कैथोलिक ईसाई समुदाय के आगरा धर्म प्रांत का सबसे बड़ा और मान्यता प्राप्त चर्च है।

By Edited By: Published: Thu, 20 Dec 2012 11:29 AM (IST)Updated: Thu, 20 Dec 2012 11:29 AM (IST)
गौरवशाली है निष्कलंक माता का महागिरजाघर

आगरा। प्रभु यीशु से अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए प्रार्थना करने का प्रमुख स्थान है निष्कलंक माता का महागरिजाघर, जहां मांगी जाने वाली हर मुराद पूरी होती है। यह रोमन कैथोलिक ईसाई समुदाय के आगरा धर्म प्रांत का सबसे बड़ा और मान्यता प्राप्त चर्च है।

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वजीरपुरा रोड स्थित निष्कलंक माता के महागिरजाघर को शहरवासी सेंट पीटर्स चर्च के रूप में जानते हैं। जहां क्रिश्चियन समाज के पर्व और विशेष दिवसों पर प्रार्थना सभा होती हैं। इसकी स्थापना तब हुई, जब अकबरी चर्च छोटा पड़ने लगा। इसका निर्माण सन् 1846 में तत्कालीन बिशप डॉ. बोर्गी वीसी के निर्देशन में किया गया। इसके निर्माण में करीब चार साल लगे। यहां पहली प्रार्थना बिशप बोर्गी ने करायी थी। वास्तुकार फ्लोरेंस (इटली) में रहने वाले फादर वोनावेंचर थे। इन्होंने ही सेंट पीटर्स कॉलेज और सेंट पैट्रिक्स जूनियर कॉलेज के भवनों के नक्शे भी बनाये थे। चर्च के पीछे एक गुफा भी बनायी गई है, जहां माता मरियम से प्रार्थना की जाती है।

आर्च बिशप के सानिध्य में होती प्रार्थना-

इस बड़े गिरजाघर में आर्च बिशप डॉ. अल्बर्ट डिसूजा के निर्देशन में विशेष आराधना की जाती है। वैसे तो प्रतिदिन प्रार्थना होती है। रविवार को प्रार्थना सभा प्रात: 7 बजे, 8.30 बजे, बच्चों के लिए प्रात: 9 बजे और सायं 7 बजे की जाती है। जिसमें करीब 700-800 विश्वासी मौजूद रहते हैं। आराधना के लिए चर्च में आर्च बिशप के निजी सचिव (विकार जनरल) फादर जो थैकटिल, फादर सनी और फादर सुनील नियुक्त हैं। इनके अलावा फादर जॉन फरेरा, फादर भास्कर, फादर सेवास्टीन, फादर मून लाजरस आदि भी पूजन विधि के समय मौजूद रहते हैं।

दुख-सुख का संदेश देते है घंटे-

चर्च में करीब 152 फुट ऊंची मीनार पर पांच घंटे लगे हुए हैं, चारों ओर चार और मध्य में एक। जो प्रतिदिन सूर्योदय, दोपहर 12 बजे और सूर्यास्त के दौरान बजते हैं। क्रिसमस, ईस्टर संडे, नए धर्माध्यक्ष की नियुक्ति आदि पर सभी घंटे बजाकर खुशी मनाई जाती है। जब कोई विशेष शोक का समाचार होता है, तब भी यह घंटे बजाये जाते हैं, लेकिन तब उनका स्टाइल बदला हुआ होता है। फादर जो थैकटिल के अनुसार प्राचीनकाल में इन घंटों का उपयोग आपत्तिकाल की सूचना के लिए भी किया जाता था।

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