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संगम में लगाई आस्था की डुबकी

पौष पूर्णिमा स्नान पर्व पर प्रयाग में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। मोक्ष की आस में लाखों लोगों ने संगम के पावन जल में डुबकी लगाकर दान-पुण्य किया। भोर से शुरू हुआ स्नान दान का सिलसिला पूरे दिन चला। प्रशासन ने करीब 12 लाख लोगों के स्नान करने का दावा किया है।

By Edited By: Published: Thu, 12 Jan 2012 08:14 PM (IST)Updated: Thu, 12 Jan 2012 08:14 PM (IST)
संगम में लगाई आस्था की डुबकी

इलाहाबाद, जागरण संवाददाता। पौष पूर्णिमा स्नान पर्व पर प्रयाग में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। मोक्ष की आस में लाखों लोगों ने संगम के पावन जल में डुबकी लगाकर दान-पुण्य किया। भोर से शुरू हुआ स्नान दान का सिलसिला पूरे दिन चला। प्रशासन ने करीब 12 लाख लोगों के स्नान करने का दावा किया है। इसके साथ ही धर्म की इस नगरी प्रयाग में त्याग, तपस्या का प्रतीक कल्पवास विधिवत आरंभ हो गया। सैकड़ों एकड़ में फैले मेला क्षेत्र में कल्पवास करने वालों के हजारों शिविर लग चुके हैं। रविवार की देर रात तक श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला जारी रहा। वह एक माह तक संगम तीरे भजन, पूजन में लीन रहेंगे।

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कड़ाके की ठंड के बाद भी लोगों की आस्था नहीं डिगी। संगम व गंगा घाटों पर भोर तीन बजे से ही स्नान-दान का सिलसिला शुरू हो गया। देश-विदेश के विभिन्न शहरों से आए श्रद्धालुओं ने स्नान के बाद संतों के शिविर में जाकर प्रवचन सुनकर अपना समय बिताया। संतों व सामाजिक संगठनों के शिविर में भंडारा का आयोजन हुआ। यहां सुबह से लेकर देर रात तक लोगों को भोजन कराया गया। किसी प्रकार की अप्रिय घटना से निपटने के लिए मेला क्षेत्र में सुरक्षा के पुख्ता इंतजार किए गए। जगह-जगह पुलिस व पीएसी के जवान मुस्तैद नजर आए। जबकि घाट पर जल पुलिस पूरी तरह से चौकन्नी रही। रामघाट, दंडीबाड़ा, कालीमार्ग घाट को ठीक से नहीं बनाया गया था, इससे वहां काफी अव्यवस्था की स्थिति रही। लोगों का पांव फिसलने के कारण वह गिर रहे थे। कई बार तो भगदड़ की स्थिति हो गई। इसके बाद भी श्रद्धालुओं ने उस ओर ध्यान नहीं दिया। गंगा तीरे शुरू हुआ कल्पवास पौष पूर्णिमा स्नान के साथ ही गंगा की रेती पर कल्पवास शुरू हो गया। सुबह गंगा स्नान के बाद कल्पवासी अपने शिविर पहुंचे। वहां तीर्थपुरोहितों के आचार्यत्व में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच मां गंगा, वेणी माधव व पुरखों का स्मरण कर त्याग व तपस्या का व्रत लिया। अब कल्पवासी एक माह तक घर-गृहस्थी, मोह-माया से दूर रहकर धार्मिक कार्यो में लीन रहेंगे। भजन, पूजन, व्रत व संतों की सेवा में अपना समय बिताएंगे। मेला क्षेत्र में कुछ लोग पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा और कुछ मकर संक्रांति से कुंभ संक्त्रांति तक कल्पवास करते हैं। कल्पवासी एक माह तक सिर्फ एक समय भोजन व दिन में तीन बार गंगा स्नान करेंगे। कल्पवास ऐसी तपस्या है जिसमें कल्पवासी धर्म के अलावा दूसरे मुद्दों पर चर्चा नहीं करते और न ही मेला क्षेत्र को छोड़कर कहीं बाहर जाते हैं। अगर कोई व्यक्ति कल्पवास के दौरान कहीं बाहर जाता है तो उनकी तपस्या खंडित हो जाती है।

तुलसी का बिरवा लगाया कल्पवासियों ने स्नान के बाद अपने शिविर के बाहर तुलसी का बिरवा लगाकर जौ बोया। इसके बाद इसका विधिवत पूजन किया। कल्पवासी तुलसी के पास प्रतिदिन सुबह-शाम दीपक जलाकर पूजन करेंगे। कल्पवास समाप्त होने के बाद वापस जाते समय इसे प्रसाद स्वरूप लेकर जाएंगे।

संतों ने भी लगाई डुबकी पौष पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं के साथ संत-महात्माओं ने भी स्नान किया। शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती ने संगम में स्नान किया। वहीं स्वामी अधोक्षजानंद देवतीर्थ, स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्मचारी ने गंगा के जल में डुबकी लगाई। शंकराचार्य स्वामी महेशाश्रम, स्वामी विमलदेव आश्रम, स्वामी ब्रह्माश्रम ने दंडीबाड़ा के सामने बने घाट पर स्नान करके पूजन किया।

अस्पताल में नहीं मिली दवा माघमेला क्षेत्र में स्वास्थ विभाग की ओर से त्रिवेणी मार्ग पर बने दो अस्पतालों में काफी अव्यवस्था रही। इसमें सर्दी, जुकाम, बुखार व जोड़ों के दर्द के मरीज पहुंचे। परंतु लोगों को दवा तक नसीब नहीं हो सकी।

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