दुर्गापूजा
महर्षि मार्कण्डेय देवी भागवत पुराण के रचनाकार हैं, जिसका एकांश है दुर्गा सप्तशती (सात सौ श्लोक)। इसमें मार्कण्डेय मुनि ने विविध देवियों के प्राकट्य को नीति, सत्यता, संस्कृति, सुरक्षा और संरक्षा का निमित्त बतलाया है।
महर्षि मार्कण्डेय देवी भागवत पुराण के रचनाकार हैं, जिसका एकांश है दुर्गा सप्तशती (सात सौ श्लोक)। इसमें मार्कण्डेय मुनि ने विविध देवियों के प्राकट्य को नीति, सत्यता, संस्कृति, सुरक्षा और संरक्षा का निमित्त बतलाया है। शुंभ से दुर्गादेवी का कथन है कि अन्य देवियां मेरी अंशिकाएं हैं। मैं तो सर्वथा अकेली हूं। अनेक प्रसंगों के अनुसार उनके रूप, आकार-प्रकार और नाम बदलते रहते हैं। दुर्गा एक सहकारी रूप है, जिसमें अनेक देवताओं ने देवी के शारीरिक अंगों की रचना की, आभूषण और युद्धायुध दिए।
देवी का माहात्म्य मेधा मुनि द्वारा राजा सुरथ और समाधि को बताया गया है। इसमें उन्होंने अर्गला, कवच और कीलक के पाठ को कथाश्रवण से पहले करना अपरिहार्य बताया है। ब्रंाजी, देवताओं और दुर्गाजी के श्रीमुख से देवीजी की कृपा का प्रभाव दुर्गा सप्तशती में वर्णित है। देवी की कृपा एक और अनेक व्यक्तियों को प्राप्त होती है। दुर्गा सप्तशती के पाठ से सच्चिदानंद स्वरूपिणी देवी को सिद्ध किया जा सकता है और मनोरथ सिद्ध किए जा सकते हैं। भगवान शंकर ने दुर्गा सप्तशती पाठ को कल्याणप्रद और सर्वश्रेष्ठ निरूपित किया है। देवी का भक्त अभय रहता और अपना लक्ष्य प्राप्त करता है। प्रथम चरित्र मधुकैटभ-वध कथा में ब्रहृमा जी ने देवी की स्तुति में कहा, देवि तुम्हीं स्वाहा, स्वधा और वषटकार हो। तुम्हीं प्रणव और ओंकार हो। सृष्टि के सृजन, पालन और समापन का तुम्हीं कारण हो। द्वितीय चरित्र (चतुर्थ अध्याय) में महिषासुर वध के उपरांत देवताओं ने दुर्गा की स्तुति में कहा कि तुम सभी देव एकात्म रूप हो। हमारे पितरों की भी तृप्ति आपकी संतुष्टि से है। पांचवें अध्याय में भी देवी की स्तुति उनका माहात्म्य-गायन है। एकादश अध्याय में देवताओं ने दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए उनकी विशेषताएं वर्णित की हैं। दुर्गा सप्तशती द्वादश अध्याय में देवी ने देवताओं को आश्वस्त किया है कि जब उनका स्मरण करेंगे वे प्रकट हो जाएंगी। वे अपने प्राकट्य की उद्घोषणाएं भी करती हैं। उन्होंने बारहवें अध्याय में वादा किया है कि उनके चरित्र का पाठ करने से व्यक्ति हर तरह के संकट से मुक्त हो जाते हैं।
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