कल्पवासियों से कुंभनगरी आबाद
द्मह्वद्वढ्डद्ध2013
कुंभनगर, जागरण संवाददाता। पौष पूर्णिमा पर संगम में पावन डुबकी के साथ सुख-सुविधाओं से परे त्याग-तपस्या की नगरी आबाद हुई। कल्पवास करने आए श्रद्धालुओं ने मन में गंगा मइया का जाप करते हुए अपना शिविर दुरुस्त किया। न साधन की चिंता न सुविधाओं की आस। एक माह तक रेती पर धूनी रमाना और साधु-संतों के साथ रहकर प्रवचन सुनना। घर द्वार से दूर कल्पवासियों की दुनिया अलग रहेगी। यहां आए हर व्यक्ति के चेहरे पर आस्था और विश्वास का तेज झलक रहा था।
प्रयाग की भूमि में कल्पवास करने की प्राचीन परंपरा है। कल्पवास मन और आत्मा की शद्धि से जुड़ा है। यही कारण है कि हर साल माघ मास में हजारों लोग यहां जप-तप के लिए आते हैं। कुंभ पर्व में कल्पवास का महात्म्य काफी बढ़ जाता है। ऐसी मान्यता है कि सच्चे हृदय से जो मानव यहां रुककर जप-तप करते हैं उन्हें बिन मांगे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
परिर्वतन मानव विकास संस्थान के निदेशक ज्योतिषाचार्य डॉ. बिपिन पांडेय के अनुसार विष्णु पुराण के अनुसार कल्पवास अमावस्या या पूर्णिमा से आरंभ होता है। इसमें की गई तपस्या कभी खाली नहीं जाती। वह बताते हैं कि पुराणों में मानव जीवन के चार पुरुषार्थ बताए गए हैं। इसमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष शामिल है। जीवनभर इंसान विधिवत पूजा-पाठ कर धर्म के लिए काम करता है। कल्पवास उसमें श्रेष्ठ होता है। संकल्प से शुरू हुई तपस्या
कल्पवास के लिए आए श्रद्धालुओं ने मन में संकल्प के साथ अपनी तपस्या आरंभ की। कल्पवासियों ने एक, छह या 12 वर्ष सच्चे हृदय से कल्पवास करने का संकल्प लिया। इसके बाद शिविर के बाहर जौ रोप कर तुलसी का बिरवा लगाया। वह एक माह तक इसका पूजन करेंगे। यहां से जाते समय प्रसाद स्वरूप उसे साथ लेकर जाएंगे। 24 घंटे की दिनचर्या
कल्पवासियों की तपस्या संतों से भी कठिन होती है। उन्हें भोर चार बजे जगना होता है, नित्य क्रिया के बाद पांच बजे के पहले गंगा स्नान हो जाना चाहिए। वहां से आकर धार्मिक ग्रंथों का पाठ। सुबह आठ बजे संतों को भोजन कराना। फिर 10 बजे खुद भोजन करना। दोपहर 1 बजे पुन: गंगा स्नान, वहां से आने के बाद गुरुमंत्र का जाप करना, कुछ देर के लिए विश्राम करना। शाम 5 से 7 बजे के बीच गंगा स्नान। इसके बाद संतों के शिविर में प्रवचन सुनना। वहां से आकर अपने कैंप में भजन-कीर्तन करके स्वल्पाहार लेकर रात 11 बजे के बाद सोना। कल्पवासी इसका करें परहेज
कल्पवासियों को संगम तीरे यम-नियम से अपनी तपस्या करनी चाहिए, बिना उसके तपस्या का कोई औचित्य नहीं रहता। संगम तीरे बसे लोगों को हर समय अपनी इंद्रियों पर नियंत्रित करके तपस्या करनी चाहिए।
=कल्पवासियों को संगम तट पर अपने हित व दूसरों के विनाश की कामना नहीं करनी चाहिए।
=एक माह तक दान करने के बाद यहां से खाली हाथ जाना चाहिए।
=प्रसाद स्वरूप बोया गया जौ व तुलसी का पौधा ले जाना चाहिए।
=झूठ नहीं बोलना चाहिए।
=गृहस्थी की चिंता नहीं करनी चाहिए।
=24 घंटे में एक बार भोजन व तीन बार गंगा स्नान करें।
=इंद्रियों पर नियंत्रण रखें।
=जमीन में सोएं।
=संतों के सानिध्य में उनका उपदेश व प्रवचन सुनें।
=भोजन खुद बनाकर खाएं।
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