अविरल गंगा के लिए अल्टीमेटम
अविरल-निर्मल गंगा के लिए केंद्र सरकार को महाकुंभ के दौरान एक और अल्टीमेटम दिया गया है। संगम नगरी पहुंचे पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह समेत तमाम विशेषज्ञों, संत-महात्माओं की मौजूदगी में शुरू हुए तीन दिवसीय गंगा संसद के पहले दिन यह अल्टीमेटम दिया गया। पूर्व सेनाध्यक्ष ने कहा, तय समय में सार्थक पहल शुरू न होने पर वह फौजी ढंग से आंदोलन-अभियान चलाएंगे।
कुंभनगर। अविरल-निर्मल गंगा के लिए केंद्र सरकार को महाकुंभ के दौरान एक और अल्टीमेटम दिया गया है। संगम नगरी पहुंचे पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह समेत तमाम विशेषज्ञों, संत-महात्माओं की मौजूदगी में शुरू हुए तीन दिवसीय गंगा संसद के पहले दिन यह अल्टीमेटम दिया गया। पूर्व सेनाध्यक्ष ने कहा, तय समय में सार्थक पहल शुरू न होने पर वह फौजी ढंग से आंदोलन-अभियान चलाएंगे।
झूंसी स्थित गोविंद बल्लभ पंत शोध संस्थान में गंगा संसद बैठी है। आयोजन के उद्घाटन सत्र में सभी धर्मो के लोग जुटे। जनरल वीके सिंह ने कहा कि गंगा को जितना बेहतर ढंग से फौजी समझते हैं, शायद दूसरे लोग नहीं हैं। भारत सरकार को छह माह का समय देते हैं, उसके बाद वह अपने ढंग से आंदोलन चलाएंगे। उन्होंने अपना संस्मरण भी सुनाया। कहा कि 12 वर्ष पूर्व वह अमेरिका गए थे। वहां पिट्सबर्ग नामक स्टील सिटी में बहुत-सी मिलें चलती थीं। इससे नदी काली हो गई थी। लोगों ने आंदोलन कर मिलों को बंद करा दिया। यहां भी उतनी ही पीड़ा और उत्साह की जरूरत है, अन्यथा कुछ नहीं होगा। जलपुरुष राजेंद्र सिंह का कहना था कि जिस ढंग से गंगा का इलाज किया जा रहा है। उससे काम नहीं चलने वाला। गंगा प्रदूषण गंभीर मर्ज है, इसलिए उतने ही गंभीर इलाज की जरूरत है। सरकार के एक्शन प्लान में तमाम खामियां हैं। इस मद में आए धन का दुरुपयोग हो रहा है। गंगा के लिए त्याग चाहिए। भूख-प्यास छोड़कर आंदोलन खड़ा करना पड़ेगा। कार्यक्त्रम की अध्यक्षता कर रहे स्वामी अविमुक्तेश्र्र्वरानंद के तेवर तीखे थे। उन्होंने कहा कि सच कहना अगर बगावत है तो वह बागी हैं। सबसे पहले तो यह तय होना चाहिए कि हमें अविरल-निर्मल गंगा चाहिए या नहीं। बिना इस निश्चय के बाकी निश्चय व्यर्थ हैं। जब हम यह सोचने लगते हैं कि गंगा-यमुना के बिना हमारा काम चल जाएगा तभी गंगा-यमुना से दूर हो जाते हैं।
स्वामी ने कहा कि गंगा को राष्ट्रीय नदी का दर्जा तो दे दिया गया, लेकिन सम्मान का भाव पैदा नहीं हुआ। व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि देश का राष्ट्रपति जब निकलता है तो सारे रास्ते साफ हो जाते हैं, वहीं राष्ट्रीय नदी के सामने मोटी दीवारें खड़ी कर दी गई हैं। यह अलग-अलग व्यवहार ही सबसे बड़ा सवाल है। दु:खद भी। राष्ट्रध्वज के अपमान पर गिरफ्तारी हो जाती है और गंगा को गंदी करने वालों के खिलाफ आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। गंगा में प्रदूषण लोगों की आस्था, सम्मान और स्वास्थ्य पर चोट है। गंगा महारानी है, उसेअपने इलाज के लिए पैसे नहीं चाहिए।
इससे पहले शोध संस्थान में गंगा जल लाकर पांच पौधे लगाने के साथ पांच कलश स्थापित किए गए। राष्ट्रीय युवा योजना के निदेशक प्रो. एसएन सुब्बाराव, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, मुंबई के विभागाध्यक्ष प्रो. परशुरामन, सामाजिक कार्यकर्त्री प्रो. कुसुम राय, संत मौन मोहन, आनंद गिरि, बंगलुरु से आए श्रीनिवासन, लियाकत अली, पंत संस्थान के निदेशक प्रो. प्रदीप भार्गव ने भी विचार रखे। संचालन राजेंद्र सिंह और प्रो. अवनीश मिश्र ने संयुक्त रूप से किया।
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