स्त्रियां आज रखेंगी जीवित्पुत्रिका व्रत
पुत्र की रक्षा व दीर्घायुष्य के लिए अनेक व्रत-उपासना का विधान शास्त्रों में बताया गया है। इसी संदर्भ में प्रमुख रूप से आश्रि्वन कृष्ण अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत का उल्लेख है।
वाराणसी। पुत्र की रक्षा व दीर्घायुष्य के लिए अनेक व्रत-उपासना का विधान शास्त्रों में बताया गया है। इसी संदर्भ में प्रमुख रूप से आश्रि्वन कृष्ण अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत का उल्लेख है। यह पर्व आठ अक्टूबर सोमवार को पड़ रहा है। यह व्रत दो दिवसीय होता है। अष्टमी तिथि को निराजल व्रत और नवमी में पारण किया जाता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर के आचार्य पद्मश्री डॉ. देवी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार नवमी तिथि रात से ही लग जा रही है ऐसे में नौ अक्टूबर को सूर्यास्त के उपरांत पारण उचित होगा। शास्त्रों में वर्णन है कि इस व्रत के प्रभाव से पुत्र शोक नहीं होता। व्रत में स्त्रियां अपने पुत्रों के दीर्घायुष्य, आरोग्य व बल-बुद्धि वर्धन के लिए प्रार्थना करती हैं। नदी या सरोवर के तट पर भगवान सूर्य व भगवती जगदंबिका की नानाविधि से पूजन कर राजा जीमुतवाहन की कथा सुनी जाती है। पूजन के उपरांत दीपक लेकर पुत्र के कल्याण की कामना के साथ स्त्रियां घर जाती हैं। यह व्रत लोकाचारों में खर- जिउतिया नाम से प्रचलित है। आशय यह है कि अखंड निर्जला व्रत रहते हुए दूसरे दिन पारण किया जाए। व्रती स्त्रियां गंगा घाटों के अलावा लक्ष्मीकुंड, लोलार्क कुंड, ईश्वरगंगी तालाब आदि स्थानों पर एकत्र होकर पूजन करती हैं। अष्टमी तिथि पर लक्ष्मीकुंड क्षेत्र में पूरे दिन मेला लगा रहता है। इसी दिन भगवती लक्ष्मी की आराधना व साधना के सोरहिया (16 दिनी) व्रत व सोरहिया मेले का समापन भी होता है। लोग महालक्ष्मी की मिट्टी की प्रतिमा क्रय कर घर में पूजते हैं। महालक्ष्मी व्रत का भी पारण भी नवमी तिथि में ही किया जाता है।
मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर