हाय दइया, इत्ती काली गंगा मइया
त्रिवेणी का तट, बुधवार-गुरुवार की रात के साढ़े तीन बजे भी गुलजार था। अलग -अलग शहरों से आए आठ वाहन, घाट से चंद कदम पहले खडे़ थे और उनमें सवार कुनबे स्नान की तैयारी में।
कुंभनगर। त्रिवेणी का तट, बुधवार-गुरुवार की रात के साढ़े तीन बजे भी गुलजार था। अलग -अलग शहरों से आए आठ वाहन, घाट से चंद कदम पहले खडे़ थे और उनमें सवार कुनबे स्नान की तैयारी में। सुरसुराती बयार, सिहरन पैदा कर रही थी मगर आस्था के ताप ने उसे परास्त कर दिया। पहले बड़े, बुजुर्ग नहाए। फिर बारी बच्चों की आयी। कानपुर से आयी छुटकी उन्हीं में से एक थी। नहाना है, सुनकर चहक गयी। इतनी खुश हुयी कि बुआ से लिपट गई। फिर त्रिवेणी की ओर देखा, विस्मय से बोली, हाय दइया, इत्ती काली गंगा मइया।
पीली रोशनी से सराबोर कुंभनगर का कण-कण भले ही रात गहराते राहों की वीरानी का साक्षी बनता है, लेकिन घाट, फुर्सत में नहीं हैं। रात के नजारों का चश्मदीद बनने के लिए यहां पहुंचा तो पांटून पुल नंबर एक, दो और तीन से होते हुए उस घाट की ओर बढ़ा जहां पहला शाही स्नान हुआ था। इस घाट ने मेरे अनुमान को धता बता दिया। सन्नाटे की बजाय 13 महिला-पुरुष नहाते, मंत्रोच्चार करते और पूजा पाठ करते दिखे। दक्षिण भारत के तिरुचरापल्ली से आए वेंकट व उनकी पत्नी लक्ष्मीन्ना ने रत्ती भर भी मेरी मौजूदगी को संज्ञान में नहीं लिया। लखनऊ के अस्थायी निवासी मणिपुर के युवा दंपति शोम व कांता मानो अद्भुत दुनिया के नजारों को तन-मन से पीने में जुटे हुए थे। शोम के लिए उसके जीवन का पहला महाकुंभ है। उसके दोस्त ने बताया था कि पहले और अंतिम शाही स्नान के बीच कभी भी किसी भी वक्त डुबकी लगा लो, पुण्य फल कम नही मिलेगा। पत्नी से सलाह के बाद आ गया स्नान करने।
लेकिन जो बात छुटकी में दिखी उसकी बात ही अलग थी। किले के पास के वीआईपी घाट पर नहाई छुटकी की ठंड से कुछ देर तक बोलती बंद रही। राहत मिली तो फिर से आ गई मूल स्वरूप में। मम्मी को डांट लगाते बोली, जब नदी में बर्फ का पानी था तो क्यों नहला दिया। टीवी में तो गंगा जी सफेद दिखती हैं? ये कौन सी गंगा जी है। इस नटखट सवाल ने न केवल उसके कुनबे और आस पास के लोगों को बल्कि प्रयागराज के पर्व पहर को भी आनंदित कर दिया। आखिर यही तो है इस धरा धाम की विशेषता, जिसमें संसार के सभी रंग समाहित हैं।
मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर