पार्वण श्राद्ध ने कराया पितरों का मिलन
श्राद्ध पूर्णिमा को श्रद्धा के भाव में पितृपक्ष का शुभागमन हुआ। लोगों ने पार्वण श्राद्ध कर पूर्व पितरों से वर्तमान पितरों का मिलन करवाया। यह दिन पितृ पक्ष, मातृ पक्ष, श्वसुर पक्ष, भ्रातृ पक्ष, गुरु पक्ष, ब्राह्मण पक्ष, ऋषि पक्ष व देव पक्ष को तर्पण का पुण्य काल भी है, इसलिए आस्थावान लोगों ने श्रद्धा भाव से इन सभी का पार्वण श्राद्ध किया।
देहरादून। श्राद्ध पूर्णिमा को श्रद्धा के भाव में पितृपक्ष का शुभागमन हुआ। लोगों ने पार्वण श्राद्ध कर पूर्व पितरों से वर्तमान पितरों का मिलन करवाया। यह दिन पितृ पक्ष, मातृ पक्ष, श्वसुर पक्ष, भ्रातृ पक्ष, गुरु पक्ष, ब्राह्मण पक्ष, ऋषि पक्ष व देव पक्ष को तर्पण का पुण्य काल भी है, इसलिए आस्थावान लोगों ने श्रद्धा भाव से इन सभी का पार्वण श्राद्ध किया।
मत्स्य पुराण में तीन प्रकार के श्राद्ध बताए गए हैं- नित्य, नैमित्तिक एवं काम्य। यम स्मृति में पांच प्रकार के श्राद्ध का उल्लेख है- नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि व पार्वण श्राद्ध। पूर्णिमा इन सभी के मिलन का श्रेष्ठ दिन है। कहते हैं कि जिन पितरों का पार्वण श्राद्ध नहीं होता, उनकी तृप्ति भी नहीं हो पाती है। इसलिए पूर्णिमा व अमावस्या के श्राद्ध को शास्त्रों में विशेष स्थान दिया गया है।
श्रद्धा के इसी भाव में शनिवार को लोगों ने अपने पितरों का स्मरण कर उनका तर्पण किया। आचार्य डा.संतोष खंडूड़ी के अनुसार पितृऋण से उऋण होने का सर्वश्रेष्ठ समय है पितृपक्ष। इस कालखंड में जो संतति अपने पितरों अर्थात श्रेष्ठजनों के प्रति श्रद्धा का भाव नहीं दिखाती, उसे पितरों की कृपा से वंचित रहना पड़ता है। उन्होंने कहा कि श्रद्धा का यह भाव जीवित पितरों के प्रति भी वैसा ही होना चाहिए, जैसा कि दिवंगत पितरों के प्रति दिखाई देता है।
जिन्हें परिजनों की श्राद्ध तिथि ज्ञात नहीं
आश्रि्वन मास का कृष्ण पक्ष पितरों को समर्पित हैं। इस अवधि में पितरों की तृप्ति के लिए उन्हें तर्पण दिए जाते हैं। लेकिन, कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें अपने परिजनों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं। इस समस्या के समाधान को पुराणों में कुछ विशेष तिथियां नियत की गई हैं। इन तिथियों पर श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
प्रतिपदा-यह तिथि नाना-नानी के श्राद्ध के लिए उत्तम मानी गई है। यदि नाना-नानी के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला न हो और उनकी मृत्यु तिथि भी ज्ञात न हो तो प्रतिपदा को उनका श्राद्ध करना चाहिए।
पंचमी- इस तिथि पर उन परिजनों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई। इसे कुंवारा पंचमी भी कहते हैं।
नवमी- यह तिथि माता के श्राद्ध के लिए उत्तम मानी गई है। इसलिए इसे मातृ नवमी कहते हैं। इस तिथि पर श्राद्ध करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है।
एकादशी व द्वादशी- इस तिथि को परिवार के उन लोगों का श्राद्ध किए जाने का विधान है, जिन्होंने संन्यास लिया हो।
चतुर्दशी- यह तिथि उन परिजनों के श्राद्ध के लिए उपयुक्त है, जिनकी अकाल (असमय) मृत्यु हुई हो।
सर्वपितृमोक्ष अमावस्या- किसी कारणवश पितृपक्ष की सभी तिथियों पर श्राद्ध से चूक जाएं या श्राद्ध की तिथि याद न हो तो इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं। इस दिन श्राद्ध करने से ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है।
महिलाओं को भी पिंडदान का अधिकार
धर्मसिंधु, मनुस्मृति, गरुड़ पुराण आदि ग्रंथ महिलाओं को पिंडदान करने का अधिकार प्रदान करते हैं। आचार्य डा.सुशांत राज बताते हैं वाल्मीकि रामायण में माता सीता के हाथों पिंडदान से महाराज दशरथ की आत्मा को मोक्ष मिलने का संदर्भ आता है। उन्होंने फल्गू नदी के साथ वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मान बालू का पिंड बनाकर महाराज दशरथ का पिंडदान किया था।
मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर