उनकी महानता ही बढ़ा रही है उनके कंधों का बोझ
पर्थ टेस्ट में पहले दिन के आखिरी 23 ओवरों में मैच का परिणाम तय हो गया था। आस्ट्रेलिया ने बिना किसी नुकसान के 149 रन बनाए। डेविड वार्नर ने विपक्षी टीम को रौंद डालने वाला धमाकेदार शतक लगाया। इन 23 ओवरों में जो हुआ, उसे मेजबान टीम का एक जोरदार मुक्का ही कहा जाएगा, जिससे मेहमान टीम चारों खाने चित हो गई।
[रवि शास्त्री की कलम से]
पर्थ टेस्ट में पहले दिन के आखिरी 23 ओवरों में मैच का परिणाम तय हो गया था। आस्ट्रेलिया ने बिना किसी नुकसान के 149 रन बनाए। डेविड वार्नर ने विपक्षी टीम को रौंद डालने वाला धमाकेदार शतक लगाया। इन 23 ओवरों में जो हुआ, उसे मेजबान टीम का एक जोरदार मुक्का ही कहा जाएगा, जिससे मेहमान टीम चारों खाने चित हो गई।
इन 23 ओवरों के पहले और बाद दोनों टीमों में कोई खास अंतर नहीं दिखा। वाका की पिच पर भारतीय गेंदबाजों को खेल पाना उतना ही मुश्किल था, जितना आस्ट्रेलियाई गेंदबाजों को। भारत का मध्यक्रम फेल हुआ तो, आस्ट्रेलियाइयों का मध्यक्रम भी कुछ खास नहीं कर पाया। फिर भी माइकल क्लार्क की टीम कई मामलों में आगे रही। विकटों की बीच दौड़, सटीक गेंदबाजी, पुछल्लों का योगदान। लेकिन दोनों टीमों के बल्लेबाजों के लिए हालात यहां कठिन ही रहे। भारतीय दिग्गज यहां चल नहीं सके। बदकिस्मती से वे ऐसे समय में फेल हुए, जब आपको आपकी उम्र में दो-तीन से ज्यादा मौके नहीं देती। यहां उनकी अपनी महानता ही उनके कंधों का बोझ बढ़ा रही है। जब आप एक दमदार पेस अटैक का सामना कर रहे होते हैं, तब एक छोटी सी गलती भी आपको भारी पड़ जाती है। गेंदबाजों की तरह बल्लेबाजों को मैदान पर दूसरा मौका भी नहीं मिलता। कुछ समय बाद आपका ध्यान भंग होने लगता है। हर गलती का असर दोगुना होता जाता है और आखिर में बल्लेबाज खुद को एक भंवर में फंसा पाता है।
बल्लेबाजी क्रम में बदलाव, तकनीक में थोड़ा सुधार, शायद खड़े होने के तरीके में कुछ नया, ऐसी कुछ चीजे शायद बल्लेबाज को पारी-दर-पारी में मिल रही असफलता से निकाल सकें। सही मायने में कहा जाए तो यहां अब हुनर से ज्यादा अहमियत मानसिक मजबूती की है। इसी मानसिक मजबूती के कारण अनुभवहीन ने अनुभवी पर दबाव बना डाला है। यह भी इस खेल की एक खूबसूरती ही है। [टीसीएम]
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