संतों के आंदोलन के साथ होगी बॉलीवुड
जाने-माने फिल्म निर्देशक महेश भट्ट शनिवार को कुंभनगरी के परमार्थ शिविर पहुंचे। अपने संक्षिप्त प्रवास में उन्होंने न सिर्फ गंगा को लेकर चलाए जा रहे आंदोलन की जानकारी ली बल्कि इस आंदोलन में बॉलीवुड की सहभागिता का भरोसा भी दिलाया। दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में भट्ट ने गंगा के साथ कई मुद्दों पर खुलकर बात की। प्रस्तुत हैं इसी बातचीत के संक्षिप्त अंश।
कुंभ नगर, [संजय पांडेय]। जाने-माने फिल्म निर्देशक महेश भट्ट शनिवार को कुंभनगरी के परमार्थ शिविर पहुंचे। अपने संक्षिप्त प्रवास में उन्होंने न सिर्फ गंगा को लेकर चलाए जा रहे आंदोलन की जानकारी ली बल्कि इस आंदोलन में बॉलीवुड की सहभागिता का भरोसा भी दिलाया। दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में भट्ट ने गंगा के साथ कई मुद्दों पर खुलकर बात की। प्रस्तुत हैं इसी बातचीत के संक्षिप्त अंश।
कुंभ में आने का ख्याल कैसे आया?
कुंभ तो सभी आयोजनों की जननी है। इतना बड़ा आयोजन वह भी बिना किसी बुलावे के देश की संस्कृति का अद्भुत प्रदर्शन है। हम ही नहीं समूचा विश्व इसका कायल है। फिलहाल मुझे बुलावा मिला था, जिसे मैं टाल नहीं सकता था।
गंगा में प्रदूषण को लेकर चल रहे आंदोलन पर क्या कहेंगे?
गंगा को बचाने के लिए गंगा एक्शन परिवार जो आंदोलन चला रहा है, वह काबिल-ए-तारीफ है। मुझे इसकी जानकारी मिली है और मैं ही क्या पूरा वालीवुड इसमें सहयोग करेगा। गंगा तो सबकी मां हैं। इसमें धर्म और जाति का कोई लेना-देना नहीं है। देश व जीवन बचाना है तो गंगा को बचाना ही होगा।
क्या आप भी गंगा पर फिल्म बनाने की सोच रहे हैं?
गंगा पर आधारित एक फिल्म बैंक आफ गंगेज के सिलसिले में ही मैं वाराणसी गया था। जहां जल्द ही इसकी शूटिंग शुरू हो जाएगी। इसके बाद वाराणसी से मुंबई तक गंगा की गूंज सुनाई देगी। इस फिल्म में गंगा जल की पूरी कहानी देखी व सुनी जा सकेगी।
वालीवुड किस प्रकार गंगा को बचाने के आंदोलन में मदद करेगा?
देखिए, हम लाउडस्पीकर का काम कर सकते हैं। फिल्मों व धारावाहिकों की पहुंच करोड़ों घरों तक है। हम गंगा के इस दर्द को अपनी फिल्मों व धारावाहिकों के जरिए लोगों तक पहुंचाएंगे। सिर्फ दर्द ही नहीं इसका इलाज भी सुझाया जाएगा। जिससे जल्द से जल्द गंगा व अन्य नदियों में प्रदूषण की समस्या दूर की जा सके।
राजकपूर की फिल्म राम तेरी गंगा मैली के बाद ऐसी कोई फिल्म नहंी आई?
राजकपूर एक बड़े कलाकार थे। उनका विजन अपने समय से काफी आगे का होता था। वे अपनी फिल्मों के जरिए गंभीर से गंभीर बात को भी काफी सरलता से कह देते थे। आज ऐसा करना थोड़ा कठिन है। इसके कई कारण हैं। मल्टीप्लेक्स कल्चर इस परंपरा में बाधक है। दूसरा कथानकों की कमी है। फिर भी कोशिश की जाए तो कुछ भी असंभव नहीं है।
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