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नदी से मुनाफे के मंत्र

नदी जिन तत्वों से प्रदूषित होकर कराहती है, यदि उनका सही ढंग से उपयोग और नियोजन किया जाए तो यही नदी मानव जीवन को नवीन उपहार दे सकती है। नदी के किनारे मशरूम की जैविक खेती की जा सकती है, बायो टायलेट बनाकर मीथेन गैस तैयार की जा सकती है और सीवर के पानी का शोधन किया जा सकता ह

By Edited By: Published: Mon, 29 Apr 2013 12:00 PM (IST)Updated: Mon, 29 Apr 2013 12:00 PM (IST)
नदी से मुनाफे के मंत्र

लखनऊ। नदी जिन तत्वों से प्रदूषित होकर कराहती है, यदि उनका सही ढंग से उपयोग और नियोजन किया जाए तो यही नदी मानव जीवन को नवीन उपहार दे सकती है। नदी के किनारे मशरूम की जैविक खेती की जा सकती है, बायो टायलेट बनाकर मीथेन गैस तैयार की जा सकती है और सीवर के पानी का शोधन किया जा सकता है। इससे पर्यावरण और पैसा दोनों का लाभ मिल सकता है। यह मंत्र ऋषिकेश स्थित परमार्थ निकेतन के परमाचार्य स्वामी चिदानंद मुनि ने यहां पत्रकार वार्ता के दौरान दिए।

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स्वामी चिदानंद मुनि यहां लोकभारती की ओर से आयोजित समग्र नदी चिंतन कार्यशाला में भाग लेने आए थे। स्वामी जी ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि 15 अक्टूबर 2012 को ऋषिकेश में डीआरडीओ और फिक्की के सहयोग से बायो टॉयलेट की शुरुआत की जा चुकी है। इसके साकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। बायो टॉयलेट को अन्य स्थानों पर भी नदी किनारे बढ़ावा देने की जरूरत है। इसमें खास तरह का बैक्टीरिया डाला जाता है जो सीवर के पानी का शोधन करता है। शोधित पानी का उपयोग जैविक खेती में किया जा सकता है। साथ ही बायो टॉयलेट से मीथेन गैस बनती है जिसे संग्रहीत कर वाहनों के ईधन के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। नदियों के किनारे जैविक खेती की जा सकती है। नदी किनारे की भूमि पर मशरूम का उत्पादन किया जा सकता है। मशरूम की खेती के लिए प्रदेश के कई वरिष्ठ अधिकारियों और संगठनों से वार्ता हो चुकी है। इसकी खेती नदियों के किनारे कूड़े के ढेरों पर भी की जा सकती है। अमेरिका के वैज्ञानिक पॉल स्टेमस ने बताया कि गोबर से तैयार उपलों पर भी खास तरह का बैक्टीरिया पाया जाता है। जो खेती के लिहाज से फायदेमंद हैं। उन्होंने सलाह दी कि नदियों के किनारे ऐसे पौधे रोपे जाएं जो पर्यावरण के लिहाज से तो बेहतर हों ही और लोगों को रोजगार भी मुहैया कराए।

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