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राम की श्री हैं सीता

जब हम श्रीराम कहते हैं, तो उसमें श्री शब्द सीता के लिए आता है। वस्तुत: सीता राम की शक्ति और शोभा हैं। पुत्री, पुत्रवधू, पत्‍‌नी और मां के रूप में उनका आदर्श स्वरूप सामने आता है।

By Edited By: Published: Wed, 18 Apr 2012 03:01 PM (IST)Updated: Wed, 18 Apr 2012 03:01 PM (IST)
राम की श्री हैं सीता

भगवती सीता भगवान श्रीरामचंद्र की शक्ति और राम-कथा की प्राण हैं। यद्यपि वैशाख मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को जानकी-जयंती मनाई जाती है, किंतु भारत के कुछ क्षेत्रों में फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को भी सीता-जयंती के रूप में मान्यताप्राप्त है। ग्रंथ निर्णयसिंधु में कल्पतरु नामक प्राचीन ग्रंथ का संदर्भ देते हुए लिखा है, फाल्गुनस्य च मासस्य कृष्णाष्टम्यां महीपते। जाता दाशरथे: पत्‍‌नी तस्मिन्नहनि जानकी॥ अर्थात् फाल्गुन-कृष्ण-अष्टमी के दिन श्रीरामचंद्र की धर्मपत्‍‌नी जनक नंदिनी श्रीजानकी प्रकट हुई थीं। इसीलिए इस तिथि को सीताष्टमी के नाम से जाना गया।

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विलक्षण प्रादुर्भाव

वाल्मीकि रामायण का कथन है कि त्रेतायुग में जब भगवान विष्णु श्रीरामचंद्र के रूप में महाराज अयोध्या में दशरथ के महल में अवतीर्ण हुए, तभी विष्णु जी की संगिनी भगवती लक्ष्मी महाराज जनक की राजधानी मिथिला की पावनभूमि पर अवतरित हुई। सीताजी का मिथिला में प्रादुर्भाव भी बड़े विलक्षण ढंग से हुआ। मान्यता है कि एक दिन राजा जनक खेत जोत रहे थे। इसी समय एक स्थान पर उनके हल की फाल रुकी, तो उन्होंने देखा कि फाल के निकट गड्ढे में एक कन्या पड़ी हुई है। राजा जनक उस कन्या को अपनी पुत्री मानकर लालन-पालन करने लगे। संस्कृत भाषा में हल की फाल को सीता कहते हैं। इसलिए जनक ने उसका नाम सीता ही रख दिया।

महाशक्तिस्वरूपा

वेद-उपनिषदों में सीता के विराट स्वरूप का परिचय विस्तार से दिया गया है। ऋग्वेद (4-57-6) में स्तुति की गई है, हे असुरों का नाश करने वाली सीते! हम आपके चरणों की वंदना करते हैं, आप हमारा कल्याण करें। आसुरी शक्तियों के नाश हेतु सीताजी से प्रार्थना करना स्वत: इस तथ्य का द्योतक है कि वे महाशक्ति हैं। सीतोपनिषद् में सीता को ही मूलप्रकृति अर्थात् आदिशक्ति माना गया है। इस उपनिषद् में उनका परिचय देते हुए कहा गया है- जिसके नेत्र के निमेष-उन्मेष मात्र से ही संसार की सृष्टि-स्थिति-संहार आदि क्रियाएं होती हैं, वह सीताजी हैं। श्रीरामोत्तरतापनी उपनिषद् में भी यही संदेश मिलता है- समस्त देहधारियों की उत्पत्ति, पालन तथा संहार करने वाली आद्याशक्ति मूल प्रकृति-संज्ञक श्रीसीताजी हैं।

गोस्वामी तुलसीदास श्रीरामचरितमानस (1-1-5) में इन्हीं तथ्यों को उजागर करते हुए सीताजी को नमन करते हैं-

उद्भव- स्थिति-संहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्।

सर्वश्रेयस्करीं सीता नतोऽहं रामवल्लभाम्॥

संसार की उत्पत्ति, पालन तथा संहार करने वाली, समस्त क्लेशों को हरने वाली, सब प्रकार से कल्याण करने वाली, श्रीरामचंद्र की प्रियतमा सीताजी को मैं नमस्कार करता हूं।

सृष्टि को उत्पन्न करने का कार्य ब्रšाजी का, पालन करने का काम विष्णुजी का तथा संहार करने का काम महाकाल (शंकरजी) का है, परंतु सीताजी में इन त्रिदेवों की शक्तियां समाहित हैं। रामायण के बालकांड में सीताजी के उद्भवकारिणी, अयोध्या से अरण्यकांड तक स्थितिकारिणी, लंकाकांड में संहारकारिणी, किष्किंधाकांड एवं सुंदरकांड में क्लेशहारिणी, उत्तरकांड में सर्वश्रेयस्करी रूप का दर्शन होता है।

भगवान श्रीराम की तरह भगवती सीता भी षडैश्वर्य-संयुक्ता हैं। पद्म पुराण में सीताजी को जगन्माता और श्रीराम को जगत्-पिता बताया गया है। अद्भुत रामायण में सीताजी की विशिष्टता और उनके विराट रूप का साक्षात्कार होता है। अध्यात्म रामायण का कहना है, एकमात्र सत्य यही है कि श्रीराम ही बहुरूपिणी माया को स्वीकार कर विश्वरूप में भासित हो रहे हैं और सीताजी ही वह योगमाया हैं। महारामायण में सीताजी को ही समस्त शक्तियों का स्नोत घोषित किया गया है।

आदर्श चरित्र

विवाह से पूर्व महाशक्ति-स्वरूपा सीता महाराज जनक की आज्ञाकारिणी पुत्री तथा विवाहोपरांत महाराज दशरथ की अच्छी बहू के रूप में सामने आती हैं। रामचंद्र जी के साथ शादी करने के बाद वह हर तरह से सच्ची सहधार्मिणी साबित होती हैं। वनवास के कष्टों की परवाह किए बिना वे पति के साथ अपनी इच्छा से वन-गमन करती हैं। इतना ही नहीं, वे हर कदम पर अपने पति का पूर्ण निष्ठा एवं सहिष्णुता से साथ देती हैं। वाल्मीकि आश्रम में अपने पुत्रों लव-कुश को अच्छे संस्कार देकर उन्हें उनके वंश के अनुरूप तेजस्वी बनाती हैं। पुत्री, पुत्रवधू, पत्‍‌नी और मां के रूप में सर्वत्र उनका आदर्श रूप ही सामने आता है। संसार में अवतरित होने पर आद्याशक्ति जिस कुशलता से अपने धर्म एवं कर्तव्य का पालन करती हैं, वह संपूर्ण जगत् के लिए प्रेरणादायक है। रामचंद्रजी को जब सीताजी ने वरमाला पहनाई, तो वे बन गए श्रीराम। वस्तुत: श्रीराम की श्री सीता ही हैं। इसीलिए हम या तो सीताराम कहते हैं या फिर सिर्फ श्रीराम। सही मायनों में भगवान रामचंद्र की श्री-रूपा शक्ति सीता ही हैं। उनका चरित्र हर दृष्टि से अनुकरणीय है।

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