मेला प्रशासन ने उखाड़े 500 तंबू, तने चिमटे
पहले चतुष्पथ, फिर अखाड़ों को जमीन के बाद अब सोमवार को नागा संन्यासियों के शिविर को लेकर संगम तीरे बखेड़ा खड़ा हो गया। महाकुंभ क्षेत्र में बिना अनुमति तन गए उनके शिविर को अतिक्रमण मानते हुए मेला प्रशासन ने डंडा चलाया तो चिमटा, सड़सा लेकर नागा संत उग्र हो गए। भारी पुलिस बल के बीच प्रशासन ने करीब पांच सैकड़ा तंबू उखाड़ दिए।
इलाहाबाद, वरिष्ठ संवाददाता। पहले चतुष्पथ, फिर अखाड़ों को जमीन के बाद अब सोमवार को नागा संन्यासियों के शिविर को लेकर संगम तीरे बखेड़ा खड़ा हो गया। महाकुंभ क्षेत्र में बिना अनुमति तन गए उनके शिविर को अतिक्रमण मानते हुए मेला प्रशासन ने डंडा चलाया तो चिमटा, सड़सा लेकर नागा संत उग्र हो गए। भारी पुलिस बल के बीच प्रशासन ने करीब पांच सैकड़ा तंबू उखाड़ दिए।
त्रिवेणी मार्ग पर जूना अखाड़े के पास सैकड़ों नागा संन्यासियों ने पंद्रह दिन से बिना अनुमति के डेरा डाल रखा था। टेंट में पूजा-पाठ भी शुरू हो गया था। मेला प्रशासन कई दिन से हटाने की चेतावनी दे रहा था। मगर संन्यासियों ने नहीं हटाया। इस बारे में अखाड़ों के कोतवाल ने भी उन्हें तीन दिन पहले आगाह कर दिया था, फिर भी नागाओं पर कोई असर नहीं हुआ। अंतत: वही हुआ, जिसका डर था। सुबह दस बजे एएसपी गंगानाथ त्रिपाठी के नेतृत्व में भारी पुलिस फोर्स त्रिवेणी मार्ग पर पहुंच गया। जैसे ही नागाओं के टेंट हटाने के लिए कर्मचारी और मजदूरों की फौज आगे बढ़ी कि वह चिमटा लेकर खड़े हो गए। उनकी पुलिस से झड़प हो गई। पुलिस उन्हें हटाने की कोशिश करती तो वह गुस्से में सड़क पर तरह-तरह के करतब दिखा राहगीरों को रोक लेते। इससे तमाशबीनों के साथ बड़ी संख्या में मेला के अन्य क्षेत्र से संन्यासियों की भीड़ जमा हो गई। यह देख एएसपी त्रिपाठी ने पीएसी बुला ली।
स्थिति अनियंत्रित न हो, इसके लिए अखाड़ा परिषद के पदाधिकारी हरि गिरी और विद्यानंद सरस्वती महराज को भी बुला लिया गया। दोनों पदाधिकारियों ने किसी तरह नागाओं को शांत किया। प्रशासनिक अधिकारियों से वार्ता के बाद यह तय हुआ कि कुछ संन्यासियों को अलग से भूमि प्रदान की जाएगी। इस आश्वासन के बाद ही नागा शांत हुए। हालांकि इस दौरान कई संतों ने आत्मदाह की चेतावनी दी, तो पुलिस अधिकारियों ने उन्हें मनाकर शांत किया। देर शाम तक त्रिवेणी मार्ग पर चले अतिक्रमण हटाओ अभियान में करीब पांच सौ नागा संन्यासियों के टेंट उखाड़े गए। लो तुम भी जाओ गंगा में
एक बाबा ने गंगा नदी के तट के ठीक बगल में अपनी पर्ण कुटीर बना रखी थी। जब पुलिस ने उनकी कुटी को गिरा दिया, तो वह आपे से बाहर हो गए। पहले पन्नी में रखा आटा नदी में फेंक दिया और फिर सारी सब्जी। इसके बाद तो भगवान की फोटो भी गंगा में यह कहते हुए फेंक दी, कि लो तुम्हारे लिए मैं यहां आया था, जब यह कुटिया ही न रही तो मैं तुम्हारी सेवा कैसे करूंगा। आसपास खड़े लोगों ने उन्हें समझाने की कोशिश की, मगर वह नहीं माने। सीओ अखाड़ा से नाराजगी
अयोध्या से आए गिरिराज कहते हैं कि संन्यासियों का जिस समय टेंट लग रहा था, उसी समय क्यों नहीं रोका गया? इसका जवाब सीओ अखाड़ा दें। उन्होंने अपनी जिम्मेदारी निभाई होती तो नागा साधुओं को यह दिन न देखना पड़ता, और न ही प्रशासन को परेशान होना पड़ता।
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