व्यंजनों की संगमस्थली है जूना अखाड़ा
यह है नागा संस्कृति, हाड़तोड़ मेहनत, ध्यान में मग्न.इसके बाद अगर समय मिले तो सबको खिलाने के बाद प्रसाद ग्रहण करना। भारत के सबसे विशालतम श्री पंचदशनाम जूना अखाड़े में विभिन्न प्रांतों के जायके का भी संगम होता है। चार संभागों की 52 मढ़ी। देश के कोने-कोने में फैले महंत, साधु और सन्यासी
यह है नागा संस्कृति, हाड़तोड़ मेहनत, ध्यान में मग्न.इसके बाद अगर समय मिले तो सबको खिलाने के बाद प्रसाद ग्रहण करना। भारत के सबसे विशालतम श्री पंचदशनाम जूना अखाड़े में विभिन्न प्रांतों के जायके का भी संगम होता है। चार संभागों की 52 मढ़ी। देश के कोने-कोने में फैले महंत, साधु और सन्यासी। उसी हिसाब से लाखों की संख्या में उनके भक्त। कुंभ का विशाल मेला और उसमें लहराती अखाड़े की ध्वजा जिसके नीचे सभी मढ़ी के महंत और उनकी ओर किया जाने वाला मां अन्नपूर्णा भंडारा। ऐसा स्वाद जैसे मां अन्नपूर्णा का सीधा आशीष। सेक्टर चार में जूना अखाड़े की ध्वजा लहरा रही है। इसके साथ ही चारों संभागों की डोर भी बंधी हुई है। अब हम आपको इस अखाड़े से जुड़े संभागों के भंडारे की ओर ले चलते हैं।
चार मढ़ी
इसका केंद्र जूनागढ़ गुजरात में है। श्री महंत हरिहरानंद भारती जी हैं। गुजरात केंद्र बिंदु होने के कारण वहां से आने वाले भक्तों की संख्या भी ज्यादा है। यहां के रसोई में गुजराती स्वाद मिल रहा है।
तेरह मढ़ी
इसका केंद्र बिंदु बालक गद्दी हिसार हरियाणा में है। श्री महंत पृथ्वी गिरि जी हैं। हरियाणा में केंद्र बिंदु होने के कारण इनके भंडारे में बनने वाले व्यंजनों में दूध-घी का स्वाद जरूर मिलता है। दाल के साथ रोटी खाना लोग ज्यादा पसंद करते हैं। इसके अलावा विभिन्न प्रकार की सब्जियां बनाई जाती हैं, जिनमें बिल्कुल शुद्ध मसाले का प्रयोग हो रहा है।
चौदह मढ़ी
इसका केंद्र बिंदु धूरी पंजाब में है। श्री महंत हरदेव गिरि जी हैं। इनके भंडारे में पंजाब के खाने का स्वाद मिल रहा है। दाल को अधिक पसंद किया जा रहा है।
सोलह मढ़ी
केंद्र बिंदु हरिद्वार, सो उत्तराखंड की जीवंतता। श्री महंत केदारपुरी जी हैं। यहां के अन्नपूर्णा भंडार में उत्तराखंड का स्वाद मिल रहा है।
दालउड़द, अरहर, मटर, चना, राजमा।
मसाले- शुद्ध और हाथ से पीसे हुए। बाहर के मसालों से परहेज। राजस्थानी थाली भी है यहां-
जूना अखाड़े से जुड़े श्री महंत नारायण गिरि जी, पीठाधीश्वर दूधेश्वर मठ गाजियाबाद के पंडाल में राजस्थान के खानसामे लगे हुए हैं। यहां आने वाले लोगों को प्रतिदिन कुछ नए व्यंजनों का स्वाद चखाया जाता है। श्री महंत ने बताया कि नगा परंपरा ही दूसरों को भोजन कराने के बाद खाने की है। .भक्तों को राजस्थानी भोजन कराकर अनंत सुकून मिलता है।
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