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पांच गांठ में रुद्र बंधे और सात गांठ में ब्रह्म

पांच गांठ में रुद्र बंधे और सात गांठ में ब्रह्म.एक लयबद्ध हांक की शक्ल में कानों तक पहुंची यह आवाज बरबस ही मेरे कदम रोक देती है। बु़द्धि और विवेक दोनों काठ।

By Edited By: Published: Sat, 19 Jan 2013 05:00 PM (IST)Updated: Sat, 19 Jan 2013 05:00 PM (IST)
पांच गांठ में रुद्र बंधे और सात गांठ में ब्रह्म

कुंभनगर। पांच गांठ में रुद्र बंधे और सात गांठ में ब्रह्म.एक लयबद्ध हांक की शक्ल में कानों तक पहुंची यह आवाज बरबस ही मेरे कदम रोक देती है। बु़द्धि और विवेक दोनों काठ। सहज जिज्ञासा कि जिन रुद्र और ब्रह्म को साधते-साधते ऋषि-मुनि, योगी-संन्यासियों की पीढ़ी- परंपराएं, युग-काल में विलीन होकर नि:शेष रहीं। उन्हीं को चंद गांठों में बांध कर अपने ठीये पर बिठा लेने वाला तप:मना साधक आखिर है कौन? इस ठौर विशेष पर भेंट होती है सीतापुर वाले पंकज गुरु से जो संगम तट की ओर जाने वाले मार्ग को निर्दिष्ट करने वाले बोर्ड के नीचे यज्ञोपवीत(जनेऊ)की दुकान सजाए बैठे हैं। पता चलता है कि उनकी यह हांक अपने माल (जनेऊ) के विज्ञापन का एक जरिया है। निवेदन करता हूं विज्ञापन बहुत हो चुका अब अपने माल के गुण-धर्म से भी अवगत करावें प्रभु। मेरी यह प्रार्थना पंकज गुरु का आचार्यत्व जगा देती है। बताते हैं- लोकाचार के अनुसार सात गांठ वाले जनेऊ को ब्रह्म गांठ की मान्यता प्राप्त है। यह विप्रजनों की पहचान है। नियम-धरम का बहुते टिटिम्भा है एम्मा। ये क्षत्रिय जनेऊ की महत्ता भी बताते हैं और इस श्रृंखला के सबसे लोकप्रिय जनेऊ रुद्र पाश से परिचय कराते हैं। पंकज गुरु के मुताबिक सबसे ज्यादा बिकने वाला यह यज्ञोपवीत सूत्र सर्वहारा की आस्था का प्रतीक है। जो भी कुंभ नहाने आता है पुण्य प्रसाद के रूप में एक गांठ जरूर ले जाता है। वे इस जानकारी से भी हमें अवगत कराना नहीं भूलते कि ब्रह्म पाश का रंग पीला और क्षत्रिय पाश का गैरिक होता है। रुद्र पाश का रंग सादा है। पंकज गुरु की दुकान से आगे तो बढ़ जाता हूं मगर सिर पर चढ़ी जनेऊ की धुृन से उबर नहीं पाता हूं। इस समय तक तीन सूत्रों वाला यह धागा मेरी रिपोर्ट का विषय बन चुका होता है। लोकाचारी मान्यताओं के बाद इसके शास्त्रीय पक्षों को भी जान-बूझ लेने कि मेरी उत्कंठा जब तक प्रसव वेदना का रूप ले इसके पहले ही मोबाइल घनघना उठता है। इसे कहते हैं बिल्ली के भाग से छींका टूटना। दूसरे छोर पर हैं मेरे कुंभ प्रवास के लिए शुभ कामनाओं का संदेश लिए श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के अर्चक पं. श्रीकांत जी। तुरंत ही जिज्ञासा को समाधान मिल जाता है। बताते हैं- 96 चौका वाला जनेऊ शास्त्रीय गणनाओं के अनुसार 27 नक्षत्रों के चार चरणों में बंटा हुआ है। हर नक्षत्र के अपने-अपने मानक अपने-अपने सिद्धांत हैं। उदाहरण के अनुसार अश्‌र्र्वनि नक्षत्र का पहला चरण चू-चे-चोला के मानक से चलेगा। इस नक्षत्र विशेष के दौरान पैदा होने वाले जातक का नामकरण और उपनयन इस नक्षत्र के अनुसार ही होगा। हर नक्षत्र के चार चरण और इस हिसाब से 4 गुणे 27 बराबर 96 का आंकड़ा बनता है। इन्ही 27 नक्षत्रों की परिधि में ब्रह्मा ब्रह्मांड, चेतन-अचेतन, गोचर-अगोचर सब समाहित हैं। इस दृष्टि से देखें तो यज्ञोपवीत सृष्टि की समस्त शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है। इसके तीन धागे सत्व-रज-तम के प्रतीक और इनमें पूरे हुए तीन महीन धागे नौ क्रियाओं की याद दिलाते हैं। उपनयन का अर्थ इस सृष्टि के संचालक श्री हरि: विष्णु के समीप जाने अर्थात् परम तत्व को जानने का अधिकारी बनना है। सामान्य अर्थो में इसे आप ज्ञानार्जन के श्री गणेश के रूप में भी ले सकते हैं। बिना उपनयन के आपको यज्ञादि कर्मो का अधिकार नहीं प्राप्त होता। संगम मोड़ की परली ओर पप्पू गुरु की दुकान पर जनेऊ का बंडल बंधवा रहे बोत्स्वाना यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डा.नरेंद्र चतुर्वेदी जनेऊ को विप्र वर्गीय मानसिकता का प्रतीक बताने वालों के कड़े आलोचक हैं।

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कहते हैं- संस्कारों के प्रति सजगता के प्रतीक इस धागे को किन्हीं दायरों में मत बांधें। आए हैं त्रिवेणी तट तक तो संस्कारों का संगम कराने वाले त्रिसूत्र का प्रसाद घर जरूर ले जाएं। मैं देखता हूं पंडित जी की मुट्ठी में रुद्रपाश (सर्वहारा)जनेऊ का बंडल है.। मैं आर्किमिडीज की तरह चीखता तो नहीं मगर मन में यूरेका (मैंने पा लिया) की आवाज जरूर गूंज उठती है। प्रोफेसर साहब की इस खरीदारी में मैंने त्रिवेणी तट पर तीन धागों के बहाने एक और संगम होते देखा है। जिसका रंग अपने राष्ट्रीय घ्वज की तीन पट्टियों से बिल्कुल मिलता-जुलता है।

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