काया के उद्धार से नवजीवन का उपहार
महेंद्रगढ़ जिले के कनीना खंड से 15 किलोमीटर दूर गांव बवानियां की खुडाली नामक बणी में बना बाबा खेमादास आश्रम यहां वाले मेलों और अपनी प्राचीनता के कारण तो प्रसिद्ध है ही, साथ ही यहां पर हुए प्रसिद्धि प्राप्त बाबा अखंडानंद की असरकारक आयुर्वेदिक औषधियों के लिए भी विख्यात है। यह प्रसिद्ध आश्रम रमणीक बणी के बीच जोहड़ के किनारे स्थित है।
हरियाणा में स्थापित अनेक मंदिर व धार्मिक स्थल किसी न किसी खूबी के कारण दूर-दूर तक प्रसिद्ध हैं। कहीं मंदिर की प्राचीनता प्रसिद्धि दिला रही है तो कहीं पर मंदिर के संत के गुणों और आराध्य देव के चमत्कारों के कारण वह स्थान प्रसिद्ध है।
महेंद्रगढ़ जिले के कनीना खंड से करीब 15 किलोमीटर दूर गांव बवानियां की खुडाली नामक बणी में बना बाबा खेमादास आश्रम भी यहां आयोजित होने वाले मेलों और अपनी प्राचीनता के कारण तो प्रसिद्ध है ही, साथ ही श्रद्धालुओं के अनुसार यह स्थान यहां पर हुए प्रसिद्धि प्राप्त बाबा अखंडानंद की असरकारक आयुर्वेदिक औषधियों के लिए भी विख्यात है। यह आश्रम रमणीक बणी के मध्य में एक जोहड़ के किनारे स्थित है। प्राचीन समय में यहां पर मात्र एक मढी होती थी लेकिन आज भव्य मंदिर बना हुआ है जहां हर समय भक्तों की भीड़ लगी रहती है। कुछ श्रद्धालु अपनी पीड़ा मिटाने के लिए तो कुछ आयुर्वेद की औषधियां पाने के लिए आते हैं। करीब 900 वर्ष पूर्व बसे इस गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि लगभग दो सौ वर्ष पहले इस बणी में एक बहुत बड़ा हींस का पेड़ होता था। बवानियां गांव से करीब दो किलोमीटर दूर गांव की खुडाली नामक बणी में इस हींस के पेड़ के पास महाराज मंगलदास आए और एक झोंपड़ी बनाकर रहने लगे, तभी से यह स्थान पूजनीय बन गया था। बुजुर्गो का यह भी कहना है कि महाराज मंगलदास विक्रमी संवत् 1862 में यहां आए और घोर तपस्या के बाद समाधि ले ली थी। उनके समाधि लेने के बाद यहां महाराज खेमादास आए जिनके नाम पर आज भी यह आश्रम प्रसिद्ध है। उनका पूजा का स्थान व समाधि आज भी ज्यों की त्यों है। आसपास के गांवों के श्रद्धालु बाबा खेमादास के समाधि स्थल पर आकर नमन करते हैं। यहां आने वाले भक्त धूणे की भभूत ले जाकर उपचार करते थे। ग्रामीणों का यह भी कहना है कि बाबा खेमादास के समाधि लेने के बाद यहां बाबा अखंडानंद आए जो आयुर्वेद के प्रख्यात विद्वान थे। उनके समय में प्रदेशभर के लोग विशेष रूप से संतान चाहने वाले दंपति श्रद्धा से आते थे और आज भी आ रहे हैं। अखंडानंद के समाधि लेने के बाद बाबा बालकनाथ गद्दी पर बैठे जिन्होंने मंदिर के सौंदर्यीकरण व विकास में चार चांद लगा दिए।
करीब सौ वर्ष से यहां दुलहंडी के दिन मेला भरता आ रहा है। इस दिन खेलों का आयोजन भी होता है और दंगल भी लगते हैं। ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को बाबा खेमादास की बरसी मनाई जाती है जिसमें प्रदेश भर के साधु-संत एकत्रित होते हैं और ग्रामीणों के सहयोग से भंडारा लगाया जाता है। गांव बवानियां की खुडाली नामक बणी में बना यह आश्रम आज प्रदेशभर के लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है।
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