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आंचल और फैला लो न मां

दुनिया में जिसे कहीं भी जगह नहीं मिलती, मां का आंचल उसके लिए हमेशा खुला रहता है। मां का स्नेहमयी आंचल कभी कम नहीं पड़ता चाहे जितने सपूत आ जाएं।

By Edited By: Published: Thu, 10 Jan 2013 02:33 PM (IST)Updated: Thu, 10 Jan 2013 02:33 PM (IST)
आंचल और फैला लो न मां

इलाहाबाद [एलएन त्रिपाठी] दुनिया में जिसे कहीं भी जगह नहीं मिलती, मां का आंचल उसके लिए हमेशा खुला रहता है। मां का स्नेहमयी आंचल कभी कम नहीं पड़ता चाहे जितने सपूत आ जाएं। तीर्थराज प्रयाग में मां गंगा के विशाल आंचल की स्थिति भी अब तक यही रही है। करोड़ों श्रद्धालुओं को आराम से स्नान व कल्पवास कराने में यह सक्षम रहा है। कुंभ 2013 में मेला प्रशासन की गलत नीतियां इस तथ्य को झुठलाने में लगीं हैं। इस बार दशकों से कुंभ मेला में शिविर स्थापित करने वाली नामी संस्थाओं को भी जमीन नहीं मिल पा रही है। अधिकारी टालमटोल में लगे हैं और संस्थाओं के पदाधिकारी चक्कर काट रहे हैं। मेले की 22अव्यवस्था के आगे मां गंगा के छह हजार एकड़ का कछार बौना नजर आ रहा है।

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मेला क्षेत्र में जमीन को लेकर मची गदर का अंदाजा लगाने के लिए कुछ उदाहरण ही पर्याप्त हैं। मानव सेवा संघ। वृंदावन के स्वामी शरणानंद द्वारा स्थापित संस्था। यह वही स्वामी जी हैं जिनकी शिष्य मंडली में देश के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद भी शामिल रहे। संस्था के महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीपी सिन्हा समेत तमाम न्यायमूर्ति इसके अध्यक्ष पद पर रहे हैं। वर्तमान में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति एसएन श्रीवास्तव इस संस्था के अध्यक्ष हैं। 1953 से कुंभ मेला में शिविर लगाकर धार्मिक कार्यो में लगी इस संस्था को कुंभ 2013 में स्थान नहीं मिल पा रहा है। धर्मसम्राट करपात्री जी महाराज।

सनातन धर्म की आधुनिक भारत में पुनस्र्थापना करने वाले करपात्री जी महाराज द्वारा स्थापित अखिल भारतीय धर्मसंघ, काशी को अब तक जमीन नहीं मिल सकी है। यह वही धर्मसंघ है जिसे शंकराचार्यो का संरक्षक व मान्यता देने वाला संगटन कहा जाता रहा है।

करपात्री जी महाराज धर्मसंघ के पंडाल में ही प्रवचन करते रहे। धर्मसंघ की जमीन आज तक आवंटित नहीं हो सकी है। धर्मसंघ के महासचिव जगजीतन पाण्डेय मंडलायुक्त से लेकर मेलाधिकारी तक चक्कर काट रहे हैं। चतुष्पथ पर करपात्री जी महाराज के दो शिष्यों को जमीन आवंटित हुई है। इसमें स्वामी शंकरदेव चैतन्य की जमीन का भी एक बड़ा हिस्सा कट गया है। इन दोनों के साथ ही इस बार काशी के कबीरचौरा मठ मूलगादी ट्रस्ट भी शामिल है।

मठ के प्रतिनिधि पिछले 15 दिनों से मेला प्रशासन कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं। दशकों से मेला में शिविर लगा रहे इस मठ को जमीन अभी तक नहीं मिल सकी। आचार्य महंत विवेक दास के अनुसार मेलाधिकारी कबीरनगर में बसने की बात कह रहे हैं पर कबीरनगर में स्थान उपलब्ध नहीं है। खाक चौक के करीब 30 महंत, सैकड़ों नई संस्थाएं व श्रद्धालु भी जमीन के इंतजार में हैं। इन स्थितियों को देखते हुए प्रार्थना करने का मन हो रहा है कि अपना आंचल और फैलाओ न मां.।

गंगा-यमुना के विशाल कछार के छह हजार एकड़ भी पड़ रहे कम

मकर संक्रांति पर पहला शाही स्नान नजदीक है, लेकिन कई संस्थाएं अभी भी जमीन के लिए इधर-उधर भटक रही हैं।

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