82 लाख लोगों ने संगम में लगाई डुबकी
मकर संक्रांति पर पहले शाही स्नान के साथ ही सोमवार को संगम तट पर सदी का दूसरा महाकुंभ शुरू हो गया। कुंभनगरी अब पूरी तरह अपने आध्यात्मिक स्वरूप में जागृत हो चुकी है।
कुंभनगर। मकर संक्रांति पर पहले शाही स्नान के साथ ही सोमवार को संगम तट पर सदी का दूसरा महाकुंभ शुरू हो गया। कुंभनगरी अब पूरी तरह अपने आध्यात्मिक स्वरूप में जागृत हो चुकी है। प्रवचन, भजन और भक्तिगीतों की गूंज है। पहले स्नान पर्व पर संगम आने वाले श्रद्धालुओं का दिन भर रेला बना रहा। प्रशासन ने दावा किया है कि सायं छह बजे तक 82 लाख श्रद्धालु स्नान कर चुके थे। स्नान का सिलसिला जारी था। सोमवार की भोर में ठीक सवा पांच बजे अखाड़ों की हर-हर महादेव की गर्जना से पूरा क्षेत्र गूंजने लगा। इसी के साथ शुभ काल का स्नान सभी 19 घाटों पर शुरू हो गया। सूरज निकलने के साथ ही मौसम और खुशनुमा हो गया और संगम की शोभा और उभरने लगी। स्नान के लिए घाटों पर प्रशासनिक स्तर पर सभी इंतजाम किए गए थे। प्रशासन के दावे के मुताबिक करीब दस बजे तक 25 लाख से ऊपर भीड़ स्नान कर चुकी थी। इसी तरह अपरान्ह दो बजे तक साठ लाख लोग स्नान कर चुके थे। 11 से लेकर दो बजे तक भीड़ का प्रेशर काफी हो चुका था, जिसे नियंत्रित करने में पुलिस घुड़सवारों को लगाया गया। संगम नोज पर अखाड़ों के स्नान के लिए विशेष जोन बनाया गया था। सुरक्षा के नजरिए से घाटों और मेला क्षेत्र के मार्गो पर सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे। मकर संक्त्राति पर स्नान के लिए आधी रात के बाद भीड़ उमड़नी शुरू हुई।
सागर को समाते देखा नदियों में - कल-कल करते, बहते-बहते सागर में समा जाना तो नदियों की नियति है पर, आज इन आंखों ने स्वयं सागर को पावन नदियों के संगम में समाते देखा। यह चमत्कार साकार था तीर्थराज प्रयाग के संगम तट पर ठाठे मारते उस अथाह जनप्रवाह के रूप में जो महांकुभ की शुभ संक्त्राति बेला में त्रिवेणी की पावन धारा में पुण्य की डुबकी लेने उमड़ पड़ा था।
त्रिविधि ताप-पाप नाशिनी त्रिवेणी के आंचल में कुछ पलों की ही पनाह पाने को आतुर इस जन सिंधु की उत्ताल तरंगों के संगम की धार में लीन होने का यह दृश्य किसी कि लिए सिर्फ एक रेला था। किसी के लिए आस्था ओर श्रद्धा का मेला, पर जिस किसी ने भी थोड़ ठिठक कर इस अद्भुत घटना को महसूसने की कोशिश की उसके लिए यह धर्म-अध्यात्म ओर दर्शन की एक अनूठी परिभाषा से साक्षात्कार के ऐतिहासिक अवसर से कम महत्वपूर्ण न था। अलग-अलग लहरों के अलग-अलग रंग अलग-अलग व्याख्याएं अलहदा तर्को के संग। कुछ लहरें थी इसमे जो राष्ट्रीय एका का संदेश ले कर गंगा की धार में समाहित हुई। इन लहरों में क्या उत्तर प्रदेश और क्या बिहार, क्या गुजरात और क्या मारवाड़ एक ध्येय, एक एक लक्ष्य एक मन और एक प्राण। आंखों के सामने पूरा भारत वर्ष आ खड़ा हुआ था।
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