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लोक अवतारी

श्रीकृष्ण हरियाणा के लोक जीवन में इतने रचे बसे हैं कि वे हर जगह विभिन्न रूपों में नजर आते हैं। जन्माष्टमी पर लोग व्रत रखते हैं और मंदिरों में श्रीकृष्ण की लीलाओं से संबंधित झांकियां निकाली जाती हैं।

By Edited By: Published: Tue, 07 Aug 2012 12:35 PM (IST)Updated: Tue, 07 Aug 2012 12:35 PM (IST)

हरियाणा नि:संदेह प्राचीन युगों से देवी-देवताओं की भूमि रही है। प्रदेश की इस पवित्र धरा पर कृष्ण, राम जैसे अवतारों के पांव पड़े हैं। एक धारणा के अनुसार हरियाणा के आरंभ में जुड़ने वाले शब्द हरि का अर्थ ही श्रीकृष्ण है। इस प्रदेश की संस्कृति, रहन-सहन, खान-पान आदि में भी श्रीकृष्ण युग की झलक साफ दिखाई देती है। प्रदेश में गोपालन श्रीकृष्ण युग की ही छाप है। श्रीकृष्ण द्वारा इस धरा पर अनेक लीलाएं करने की पौराणिक गाथाएं आज भी सुनी जा सकती हैं। हरियाणा के लोगों में धार्मिक आस्था कूट-कूटकर भरी हुई है। यहां के लोग वैसे तो शिव, पार्वती, श्रीगणेश, लक्ष्मी आदि अनेक आराध्य देवी-देवताओं की पूजा करते हैं लेकिन श्रीकृष्ण इनके रोम-रोम में बसे हैं। भगवान श्रीकृष्ण कर्मयोगी थे और सोलह कला संपन्न थे। संगीत और नृत्य कला भी श्रीकृष्ण में थी, वे बांसुरी वादक थे तथा गोपियों के साथ महारास रचाते थे। वे एक साथ अर्जुन के सखा, सुदामा के सहचर, गोपियों के स्वामी तथा अध्यात्म पुरुष थे। भगवान के किसी भी अवतार ने जीवन के इतने विविध पहलुओं को नहीं छुआ था। हमें श्रीकृष्ण का लौकिक रूप ही अधिक भाता है। लोक साहित्य में श्रीकृष्ण का स्वरूप अगाध सागर सरीखा है, जो जितनी गहरी डुबकी लगाता है, उसके हाथ उतने ही दुर्लभ और बहुमूल्य रत्न आ जाते हैं। लोकमानस में रचे-बसे श्रीकृष्ण के विविध रूपों का चित्रण सूरदास जैसे कृष्णभक्त साहित्यकारों, कवियों ने अपनी रचनाओं में किया है। बाल कृष्ण लीला का वर्णन करते हुए कवि ने लिखा है -

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यशोदा हरि पालने झुलावैं,

मेरे लाल को आउ निदरिया,

काहे न आनि सुवावै।

तू कहो न बेगि आवै,

तुमको कान्हा बुलावै..।

बारहमासा गीतों से लेकर का‌िर्त्तक के गीतों तक सर्वत्र कृष्ण और राधा के प्रसंगों का ही प्रसार है। हरियाणवी अविवाहित बालाएं तो अपने पिता से कृष्ण जैसा कर्मयोगी और कृष्ण जैसा परम प्रेमी वर ढूंढने का अनुरोध करते हुए

कहती हैं -

सीस उपावै ध्ध ल्यावै, हो राम।

कंवर कन्हैया हो घरबारी, हो राम।

एक दिन देवकी पानी भरने के लिए पनघट पर गई तो मार्ग में उसे यशोदा मिली। देवकी को उदास देखकर यशोदा ने उसके दुख का कारण पूछा-

जल भरण देवकी जाय,

यशोदा रास्ते में मिली,

हे! के दुखड़ा बेबे सास-नणद का,

के बोले भरतार हे बेबे..।

पति-पत्नी की नोक-झोंक, रूठना-मनाना से लेकर मान-मनुहार तक, शादी-विवाह के बन्नी गीत प्रसंगों से लेकर जच्चा-बच्चा के प्रसंगों तक जीवन के लोकगीत मिलते हैं। लोक साहित्य में गोपियों संग भी उनके अनेक वर्णन मिलते हैं। एक गोपी को कृष्ण ने सुनसान जंगल में घेर लिया और फाग खेलने लगे। उसे देर हो रही है। ऊपर से देवरानी-जेठानी के तानों का भी पूरा भय है -

एकली घेरी बन में आण,

श्याम तन्नैं या के ठाणी रे।

जै मन्नैं होगी देरी,

लड़ैं दुराणी-जिठाणी रे ..।

श्रीकृष्ण हरियाणा के लोक जीवन में इतने रचे बसे हैं कि वे हर जगह विभिन्न रूपों में नज़र आते हैं। जन्माष्टमी पर जहां स्त्री, पुरुष, बच्चे, बूढ़े, युवक-युवतियां व्रत रखते हैं, वहीं मन्दिरों में श्रीकृष्ण की लीलाओं से संबंधित झांकियां निकाली जाती हैं। बेरी, भिवानी व कुरुक्षेत्र की झांकियां अधिक प्रसिद्ध हैं। दीवाली के अवसर पर गोवर्धन पूजन की परंपरा भी श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत के माध्यम से वृंदावन वासियों के बचाव की परंपरा से जुड़ी हुई है। यही कारण है कि गोवर्धन को हरियाणा में गउओं के धन में वृद्धि करने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भौतिकता की चकाचौंध में मानव मन अत्यंत चंचल और अशांत हो गया है। आज भी योगेश्वर श्रीकृष्ण द्वारा प्रतिपादित अध्यात्म योग उतना ही प्रासंगिक है जितना आज से पांच हजार वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण के अवतरण काल में था।

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