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प्रेम का मार्ग

प्रेम में सोच-विचार नहीं होता, सिर्फ भाव होता है। विचार वृक्ष में लगे पत्तों की भांति है, जबकि भाव उसके नीचे छिपी जड़ों की तरह। प्रेम को महसूस करने के लिए हृदय को जगाना होगा। ओशो का चिंतन..

By Edited By: Published: Wed, 14 Mar 2012 03:01 PM (IST)Updated: Wed, 14 Mar 2012 03:01 PM (IST)
प्रेम का मार्ग

मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं कि मेरा किसी से प्रेम हो गया है। मैं कहता हूं, सोचकर कहो, तो वे चिंतित हो जाते हैं। वे कहते हैं कि मैं सोचता हूं कि मुझे प्रेम हो गया है। हुआ या नहीं, यह तो पक्का नहीं, लेकिन विचार आता है कि मुझे प्रेम हो गया है।

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क्या प्रेम का विचार आवश्यक है? तुम्हारे पैर में कांटा गड़ता है, तो तुम्हें बोध होता है कि पैर में पीड़ा हो रही है। तुम ऐसा तो नहीं कहते कि मैं सोचता हूं कि शायद पैर में पीड़ा हो रही है। कांटा सोच-विचार को छेद देता है। उसके आर-पार निकल जाता है। जब तुम आनंदित होते हो, तो क्या तुम सोचते हो कि तुम आनंदित हो रहे हो या सिर्फ आनंदित होते हो? कोई प्रियजन चल बसे, तो क्या तुम श्मशान पर सोचते हो कि तुम दुखी हो रहे हो। सोचते हो, तो शायद दिखावा होगा। दूसरों को दिखाने के लिए हंसना भी पड़ता है, दुखी भी होना पड़ता है, लेकिन तब तुम्हारे भीतर कुछ नहीं हो रहा होता।

प्रेम सोच-विचार वाला नहीं होता। यह तो भाव का प्रेम है। जब भाव से तुम्हें कोई बात पकड़ लेती है, तो समझो तुम्हें वह जड़ों से पकड़ लेती है। विचार तो वृक्षों में लगे पत्तों की भांति है, जबकि भाव वृक्षों के नीचे छिपी जड़ों की तरह। छोटा सा बच्चा भी जनमते ही भाव में समर्थ होता है, विचार में समर्थ नहीं होता। विचार तो बाद का प्रशिक्षण है। उसे सीखना पड़ता है- स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, संसार, अनुभव से, लेकिन बच्चा भाव तो पहले ही क्षण से करता है। अभी-अभी पैदा हुए बच्चे को देखो, वह भाव से आंदोलित होता है। अगर तुम प्रसन्न हो, आनंद से तुमने उसे छुआ है, तो वह भी पुलकित होता है। अगर तुम उपेक्षा से भरे हो और तुम्हारे स्पर्श में प्रेम की ऊष्मा नहीं है, तो वह तुम्हारे हाथ से अलग हट जाना चाहता है। अभी उसके पास सोच-विचार नहीं है। अभी मस्तिष्क के तंतु तो निर्मित होने हैं। अभी तो ज्ञान, स्मृति बनेंगे, तब वह जानेगा कि कौन अपना है, कौन पराया। अभी वह अपना-पराया नहीं जानता। अभी तो जो भाव के निकट है, वह उसका अपना है, जो भाव के निकट नहीं है वह पराया है। फिर तो जो अपना है, उसके प्रति भाव दिखाएगा। इसीलिए तो छोटे बच्चे में निर्दोषता का अनुभव होता है।

प्रेम भाव का होता है। उसे महसूस करने के लिए मैं लोगों से कहता हूं- थोड़ा हृदय को जगाओ। कभी आकाश में घूमते हुए बादलों को देखो। उन्हें देखकर नाचो भी, जैसे मोर नाचता है। पक्षी गीत-गाते हैं, तो उनके सुर में सुर मिलाओ। वृक्ष में फूल खिलते हैं, तो तुम भी प्रफुल्लित हो जाओ। चारों तरफ जो विराट फैला है, उसके हाथ अनेक-अनेक रूपों में तुम्हारे करीब आए हैं- कभी फूल, कभी सूरज की किरण, कभी पानी, कभी लहर बनकर। इस विराट से थोड़ा भाव का नाता जोड़ो। बैठे सोचते मत रहो। इंद्रधनुष आकाश में खिले, तो तुम यह मत सोचो कि इसकी फिजिक्स क्या है। यह मत सोचो कि जैसे प्रकाश प्रिज्म से गुजरकर सात रंगों में टूट जाता है, इसी तरह किरणें पानी के कणों से गुजरकर सात रंगों में टूट गई हैं। इस पांडित्य के कारण तुम भाव से वंचित रह जाओगे। इंद्रधनुष का सौंदर्य खो जाएगा, हाथ में फिजिक्स की किताब रह जाएगी। आकाश की तरह अपने अंदर भी इंद्रधनुष खिलने दो। अपनी जिंदगी में उसके रंग उतरने दो।

विचार का प्रेम सौदा ही बना रहता है, क्योंकि विचार चालाक है। विचार यानी गणित। विचार यानी तर्क। विचार के कारण तुम निर्दोष हो ही नहीं पाते। वहीं भाव निर्दोष होता है। विचार के कारण तुम अपनी सहजता, सरलता और समर्पण का अनुभव नहीं कर पाते, क्योंकि विचार कहता है कि सजग रहो। सावधान, कोई धोखा न दे जाए। विचार भले ही तुम्हें धोखों से बचा ले, लेकिन अंतत: धोखा दे जाता है। भाव के साथ तुम्हें शायद कुछ खोना पड़े, लेकिन भाव पा लिया तो सब कुछ पा लिया।

एक आदमी सपना देखता रहा है कि उसने बड़ी हत्याएं की हैं, चोरियां की हैं, और वह परेशान है कि उनसे छुटकारा कैसे मिलेगा। वह कैसे अच्छे कर्म कर पाएगा। तभी तुम जाते हो और उसे जगा देते हो। आंख खुलते ही उसका सपना टूट जाता है। उसे कर्म नहीं बदलने पड़ते, बस सपना टूट जाए। फिर वह खुद ही हंसने लगता है कि मैं भी क्या सोच रहा था। मैं सोच रहा था कि इससे छुटकारा कैसे मिलेगा और सपना टूटते ही छुटकारा मिल गया।

विचार तुम्हारे स्वप्न हैं। कर्म तो विचार के भीतर घटित हो रहे हैं। विचार टूट जाए, तो तुम जाग गए। तुम्हारे पूर्व जन्म भी दु:स्वप्न ही हैं, उन्हें बदलने का सवाल ही नहीं। बस जागते ही परिवर्तन आ जाता है। जिन विचारों से झंझावात और ऊहापोह मचा है, बस उसे शांत कर लो। इन्हें शांत करने के दो उपाय हैं। एक ढंग ध्यान है। दूसरा मार्ग प्रेम का है। तुम इतने प्रेम से भर जाओ कि तुम्हारे जीवन की सारी ऊर्जा प्रेम बन जाए। जो ऊर्जा भावना बन रही थी, विचार बन रही थी, तरंगें बन रही थी, वह खिंच आए और प्रेम में नियोजित हो जाए। ध्यान का रास्ता सूखा है, तो प्रेम का रास्ता हरा-भरा है। उस पर पक्षी गीत गाते हैं, मोर भी नाचते हैं। उस पर गीत भी है, नृत्य भी। उस पर तुम्हें कृष्ण मिलेंगे बांसुरी बजाते। उस पर तुम्हें चैतन्य मिलेंगे गीत गाते, उस पर तुम्हें मीरा मिलेंगी-नाचती-गाती।

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