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प्रयाग की पंचकोसी परिक्रमा में पडि़ला महादेव मंदिर का अपना विशिष्ट स्थान है। भरद्वाज मुनि की तपस्थली तीर्थराज प्रयाग के उत्तर पडि़ला महादेव मंदिर में प्राचीन काल से ही सोमवार कृष्णपक्ष की त्रयोदशी, शुक्लपक्ष की पूर्णिमा, महाशिवरात्रि, अधिकमास में भक्तगण विशेष रूप से पूजा अर्चना करते हैं।

By Edited By: Published: Fri, 18 Jan 2013 02:46 PM (IST)Updated: Fri, 18 Jan 2013 02:46 PM (IST)

प्रयाग की पंचकोसी परिक्रमा में पडि़ला महादेव मंदिर का अपना विशिष्ट स्थान है। भरद्वाज मुनि की तपस्थली तीर्थराज प्रयाग के उत्तर पडि़ला महादेव मंदिर में प्राचीन काल से ही सोमवार कृष्णपक्ष की त्रयोदशी, शुक्लपक्ष की पूर्णिमा, महाशिवरात्रि, अधिकमास में भक्तगण विशेष रूप से पूजा अर्चना करते हैं। लगभग एक फिट ऊंचे क्षैतिज आकार के शिवलिंग को प्रयाग के मंदिरों में विशिष्ट स्थान प्राप्त है। मनौतियों के पूरा होने पर श्रद्धालुगण बांस में पिरोई रंगीन पताकाओं को चढ़ाते हैं। इनके शीर्ष को शिवलिंग से स्पर्श कराकर समर्पित किया जाता है।

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फाफामऊ से तीन किलोमीटर उत्तर पूर्व में यह मंदिर स्थित है। इलाहाबाद शहर से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित पडि़ला गांव के इस मंदिर के आस पास भी कई मंदिर व व गिरी बाबा की जीवित समाधि है। रेलवे स्टेशन व बस स्टेशन से दिन के वक्त फाफामऊ के लिए चलने वाली प्राइवेट टैक्सियों के माध्यम से यहां पहुंचा जा सकता है। कई ट्रेन भी फाफामऊ जंक्शन पर रुकती है।

पांडवों ने स्थापित किया था शिवलिंग

पौराणिकता

जनश्रुतियों के अनुसार, स्वर्गारोहण के लिए पांडवों ने जब पाटलिपुत्र से प्रस्थान किया तो यात्रा क्रम में वे प्रयाग आए। यहां उन्होंने महर्षि भरद्वाज के दर्शन किये और उन्हीं के परामर्श से गंगा के किनारे के अवधूत संतों के इस स्थान पर पहुंचे। पांडवों ने यहां रात्रि विश्राम किया और परंपरा के अनुसार अपने कुल देव शिव के निमित्त शिविलिंग की स्थापना की। पांडवों द्वारा प्रतिष्ठापित होने के कारण ही इस मंदिर को पांडवेश्‌र्र्वर (पडि़ला) महादेव मंदिर कहते हैं। इसी आधार पर इसे द्वापरकालीन माना जाता है। मान्यता है कि पडि़ला महादेव के दर्शन से पुत्र रत्न की प्राप्ति के बाद यहां समाधि पर सुलभा या गांजा चढ़ाने की परंपरा है।

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