शुद्ध है तो सुकून भी, शांति भी
भारतीय परंपरा में शुद्ध-अशुद्ध को बड़ी अहमियत दी गई है, फिर चाहे वह समय ही क्यों न हो। किसी भी कार्य की शुरुआत होती है तो शुद्ध-अशुद्ध का मूल्यांकन करने के बाद।
देहरादून। भारतीय परंपरा में शुद्ध-अशुद्ध को बड़ी अहमियत दी गई है, फिर चाहे वह समय ही क्यों न हो। किसी भी कार्य की शुरुआत होती है तो शुद्ध-अशुद्ध का मूल्यांकन करने के बाद।
इसीलिए शास्त्रों में मुहूर्त का विधान किया गया, लेकिन समय कब शुद्ध है और कब अशुद्ध, इस बारे में शायद ही किसी को जानकारी होगी। कब, कौन सा ग्रह-नक्षत्र किस स्थिति में है, इसी से होता है शुद्ध-अशुद्ध का निर्धारण। शुद्ध समय में किए कार्य जहां जीवन को ऊर्जावान बनाते हैं, वहीं अशुद्ध समय कार्य को दोषकारी बना देता है। गृह क्लेश समेत तमाम तरह की परेशानियां जीवन में खड़ी होने लगती हैं। मुहूर्त चिंतामणि में उल्लेख है कि कैसे शुद्ध-अशुद्ध मुहूर्त कार्य की सफलता और असफलता का कारण बनते हैं।
बीता हुआ शुद्ध-अशुद्ध-
आचार्य डॉ. संतोष खंडूड़ी और स्वामी दिव्येश्वरानंद के अनुसार अब तक एक से 14 जनवरी तक धनु [खर] मास दोष और 14 मार्च से संवत्सर समाप्ति तक मीन [खर] मास दोष के चलते समय अशुद्ध रहा। जबकि 15 जनवरी से 13 मार्च तक मकर-कुंभ के सूर्य में समय शुद्ध रहा।
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