गूंजने वाले हैं बाबा बर्फानी के जयकारे
आस्था की प्रतीक छड़ी मुबारक अमरनाथ यात्रा में पवित्र हिमलिंग के दर्शनों के अतिरिक्त सर्वाधिक महत्व की चीज छड़ी मुबारक है। सरकारी तौर पर भले ही यात्रा की तिथियां कुछ भी हो लेकिन पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यात्रा की अवधि छड़ी मुबारक से जुड़ी है। अर्थात व्यास पूर्णिमा से श्रावण पूर्णिमा यानि रक्षा बंधन तक।
आस्था की प्रतीक छड़ी मुबारक
अमरनाथ यात्रा में पवित्र हिमलिंग के दर्शनों के अतिरिक्त सर्वाधिक महत्व की चीज छड़ी मुबारक है। सरकारी तौर पर भले ही यात्रा की तिथियां कुछ भी हो लेकिन पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यात्रा की अवधि छड़ी मुबारक से जुड़ी है। अर्थात व्यास पूर्णिमा से श्रावण पूर्णिमा यानि रक्षा बंधन तक।
वस्तुत: छड़ी मुबारक की रस्म चांदी की एक छड़ी से जुड़ी है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस छड़ी में भगवान शिव की अलौकिक शक्तियां निहित हैं। जनश्रुति है कि महर्षि कश्यप ने यह छड़ी भगवान शिव को इस आदेश के साथ सौंपी थी कि इसे प्रति वर्ष अमरनाथ लाया जाए। अमरनाथ यात्रा की औपचारिक शुरुआत के लिए व्यास पूर्णिमा के दिन छड़ी मुबारक भूमि पूजन व ध्वजारोहण हेतु श्रीनगर से पहलगाम के लिए रवाना की जाती है। इसके बाद रक्षा बंधन से एक पखवाड़ा पूर्व सोमवती अमावस्या के दिन इसे एक अन्य पूजा के लिए श्रीनगर स्थित शंकराचार्य मंदिर ले जाया जाता है। यहां से यह शरीका भवानी मंदिर और फिर आगे छड़ी स्थापना व ध्वजारोहण समारोह के लिए दशनामी अखाड़ा ले जाई जाती है। तदुपरांत नाग पंचमी के दिन छड़ी पूजन किया जाता है और इसके ठीक पांच दिन बाद इसे अमरनाथ के लिए रवाना किया जाता है। पहलगाम से अमरनाथ के मार्ग पर छड़ी मुबारक का शेषनाग, पंजतरणी आदि पड़ावों पर ठहराव होता है और अंतत: रक्षाबंधन वाले दिन यह अमरनाथ गुफा पहुंचती है। वहां छड़ी मुबारक की पूजा-अर्चना के साथ ही अमरनाथ यात्रा संपन्न हो जाती है। वापसी में इसे पहलगाम लाकर लिद्दर नदी के जल में प्रवाहित कर दिया जाता है।
छड़ी मुबारक को अमरनाथ यात्रा पर ले जाने का दायित्व दशनामी अखाड़ा श्रीनगर के महंत के ऊपर होता है। वर्तमान में अखाड़े के अधिष्ठाता महंत दीपेंद्र गिरी हैं। जारी है..
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