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मणिमहेश स्नान से हो जाता है दुख व क्लेश का नाश

शास्त्रों में कहा गया है कि हर कण-कण में शंकर हैं। जिसकी जैसी भावना होती है, प्रभु की सूरत वैसी ही दिखाई देती है। भगवान शंकर जी आशुतोष हैं। वह महान परोपकारी, कल्याणकारी हैं।

By Edited By: Published: Mon, 24 Sep 2012 01:19 PM (IST)Updated: Mon, 24 Sep 2012 01:19 PM (IST)
मणिमहेश स्नान से हो जाता है दुख व क्लेश का नाश

शास्त्रों में कहा गया है कि हर कण-कण में शंकर हैं। जिसकी जैसी भावना होती है, प्रभु की सूरत वैसी ही दिखाई देती है। भगवान शंकर जी आशुतोष हैं। वह महान परोपकारी, कल्याणकारी हैं। राष्ट्र के संकट के समय उन्होंने जहर पिया। भारतवर्ष के चारों ओर भगवान शंकर के प्रसिद्ध स्थान हैं। जहां समय-समय पर श्रद्धालु आस्था के साथ दर्शनार्थ जाते हैं और भगवान शिव के कृपा के पात्र बनते हैं।

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हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले के भरमौर उपमंडल के तहत आता है मणिमहेश। यहां पांडवों ने अज्ञात वास के दौरान महत्वपूर्ण दिन व्यतीत किए थे। अनेक मंदिर जिनका निर्माण पांडवों ने किया, इस तथ्य के साक्षी हैं। जब सूर्य की पहली किरण ने अंधेरे की चादर को अपने आगोश में लिया तो चारों तरफ घनी वादियों में छटा बिखेरे हुए भगवान मणिमहेश के पावन धाम में श्रद्धा एवं भक्ति की घंटियां बजने लगी। इस क्षेत्र में पहाडि़यों पर जब सूर्य भगवान उदय होते हैं तो जनश्रुति के अनुसार तीन दिव्य प्रकार की रोशनियां निकलती हैं। जो ब्रह्मा, विष्णु व महेश की प्रतीक मानी जाती हैं। लोगों की आस्था है कि श्रद्धा और विश्वास के साथ मणिमहेश की यात्रा कर झील में स्नान करता है उसके दुख व क्लेशों का नाश हो जाता है। मणिमहेश यात्रा यूं तो वर्षभर चलती है परंतु श्रावण व भाद्रपद की यात्रा एवं स्थान का विशेष महत्व है। संक्रांति, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी व राधाअष्टमी को यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आस्था की झील मणिमहेश में स्नान करते हैं। आस्था का प्रतीक एवं भोले बाबा की तपोस्थली में अंतिम स्नान राधा अष्टमी को होता है। लाखों श्रद्धालु इस दिन इस पवित्र झील में स्नान कर शिव कृपा के पात्र बनते हैं। ऐसा मत है कि झील से मणि भी निकलती है, जिसके दर्शन सौभाग्यशाली श्रद्धालु ही कर पाते हैं। मणिमहेश स्नान करो पर वहां से खाली मत लौटो, नए संकल्प लेकर लौटो। स्नान की पवित्रता से भीतर के जगत को परिवर्तित करो। वहां की शांति व ऊर्जा से मन को नहलाओ। तभी तो संत कबीरदास जी कहते हैं-

मो को कहां ढूंढे बंदे, मैं तो तेरे पास में।

न मैं मंदिर, न मैं मस्जिद, न कावा कैलाश में।।

[अशोक शर्मा, भडियाड़ा, कांगड़ा]

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