ईश्वर नित्य विद्यमान सत्ता
प्रभुप्रेमी संग शिविर में श्री मदभागवत ज्ञान के समापन दिवस पर व्यास पीठ से जूना पीठाधीश्र्र्वर अचार्य महामण्डलेश्र्र्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि ने कहा कि इश्र्र्वर नित्य विद्यमान सत्ता है। जहां कोई असंभव नही है। इस लिए जब जीव ईश्र्र्वर की सन्निनिधि में जाता है तब उसे ईश्र्र्वर का बोध होता है।
कुंभनगर। प्रभुप्रेमी संग शिविर में श्री मदभागवत ज्ञान के समापन दिवस पर व्यास पीठ से जूना पीठाधीश्र्र्वर अचार्य महामण्डलेश्र्र्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि ने कहा कि इश्र्र्वर नित्य विद्यमान सत्ता है। जहां कोई असंभव नही है। इस लिए जब जीव ईश्र्र्वर की सन्निनिधि में जाता है तब उसे ईश्र्र्वर का बोध होता है। उन्होंने कहा जब इन्द्रीयां सहज एवं शान्त होती है तब व्यक्ति सहज संपन्न एवं समाधिष्ट का अनुभव करने लगता है। उपनिषद कहते है कि ईश्र्र्वर और जीव अपने मूल में एक ही है जो मित्र की तरह है। मित्रता का अर्थ अटूट संबंध से है। आचार्य ने कहा कि सांसारिक प्राणी सुखी होना चाहता है और आध्यात्मिक प्राणी आनन्द चाहता है। उन्होंने कहा कि सच्चा साधक वहीं है जो सभी संप्रदाय का आदर करता है।
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